गुरुवार, जनवरी 14, 2010

९१ कोजी होम

गुलज़ार साहब का दर्द
......................................

उनका दर्द , अपनी डायरी तक रहता है ......कभी किसी से कहते नहीं .....

और जब निकला भी तो सब तक पहुंचा ........


हजार रहें , मुड़ के देखी

कहीं से कोई सदा न आई

बड़ी वफा से निभाई तुमने

हमारी थोड़ी सी बेवफाई


लोग कहते हैं दर्द बाँटने से कम हो जाता है .....पर गुलज़ार साहब अपने गीतों से

लोगों तक पहुंचाते हैं .....

उनके दुखों का रंग , बड़ा अलग है .....जैसा पाते हैं ,जैसा मिलता है .....उसको अपनी डायरी

में लपेट लेतें हैं , मुझे ,सालों साल काम करते हो गया उनके पास ......पर रिस्ता हुआ उनका दुःख की भनक

किसी तक पहुँचने नहीं देते .......

उन्हें हर कोई ठगना चाहता हैं .........

और वो चाहते हैं .....कोई उन्हें ठगे

बहुत जल्दी किसी के दुःख को अपना लेते हैं ...

मैंने भी उनकों इक बार दुखी कर दिया था .....और उसकी खबर मुझ तक दसो साल

बाद पहुंची ...और वह भी ....उनके सेक्रेटरी ,जनार्दन ने बताया था .....

इस बात को जानने के बाद ....मैं उनसे मिलने सालों साल मिलने नहीं गया डर के मारे ...

फिर एक दिन ऐसा आया .....मैं उनसे मिलने गया ....मिर्जा ग़ालिब के निर्माता के साथ ....गुलज़ार साहब ने

मुझसे एक सवाल किया ....बहुत दिनों बाद आये ....?.मेरे पास कोई जवाब नहीं था ,पल भर को चुप रहा ।

कहा भाई....वो क्या है .....मैं सहारा में काम करता हूँ ......उनका आफिस गोरेगांव में है । और ....आप

का आफिस बांद्रा में ....बस उल्टा...पड़ता है रास्ता ...मेरा इतना कहते ही ....गुलज़ार साहब बोल पड़े .....जब बाप बूढा॥

हो जाता है ....तो बेटो के पैर उलटे ही पड़ते है ....रास्तों पर

यह सुन कर ...मैं अपनी ही नजरों में गिर गया ...

वह मुझे से क्यों नराज थे .....आप लोगों से जरुर बाटूंगा ...........हुआ कुछ ऐसा ...एक फिल्म ,गुलज़ार साहब

की थी .....जिसका नाम " लिबास " था । मैं उस फिल्म का मुख्य सहायक था । इस फिल्म के निर्माता विकास

मोहन जी ....किसी फिल्म फेस्टिबल में ले जाना चाहते थे .......फिल्म की डबिंग अभी बाकी थी ....और गुलज़ार

साहब कहीं बाहर ..जा रहे थे ...

विकास जी ने मुझ से कहा ........इसकी डबिंग कराने को ....और मुझ से कहा ,गुलज़ार साहब ने

डबिंग करने की इज्जात दे दी है ....डबिंग हुई ....पर मुझसे से गुलज़ार साहब नराज हो गये ......


यह वह दौर था ,जब मैं गुलज़ार साहब के साथ जुडा नहीं था ...

जिस दिन यह बात हुई .....और आज का दिन, मैं उनसे अलग नहीं हुआ .....मिलता हूँ, काम हो या न हो

या वो किसी बहाने से बुला लेते हैं '........

एक पिता को खो चुका हूँ ......

इनकों नहीं खोना चाहता हूँ ....

और अपने से कोई और दर्द नहीं देना चाहता हूँ .....

पिछली पोस्ट में ....मशीन ने धोखा दिया ....कलम की तरह नहीं चलती

धीरे -धीरे पकड़ में आ रही है

1 टिप्पणी:

अजय कुमार ने कहा…

.....जब बाप बूढा॥

हो जाता है ....तो बेटो के पैर उलटे ही पड़ते है ....रास्तों पर

ऐसी लखटकिया बात तो गुलजार साहब जैसा व्यक्ति ही कह सकता है