वक्त के बहुत पाबंद हैं गुलज़ार साहब ,अगर आप उनसे मिलने जारहें हैं तो ,एक बात ख्याल
रखना पड़ेगा ,जो वक्त कुटी साहब ने दिया है उससे पांच मिनट पहले पहुंचना पड़ेगा ...वरना
आप की मीटिंग कैंसिल हो जायेगी .......आज भी मैं वगैर वक्त लिए उनसे मिलने नहीं जाता
आज भी वो दस बजे आ कर आफिस में आ कर बैठ जाते हैं ....और शाम को पांच बजे
आफिस छोड़ देते हैं ....जितनी भी मीटिंग हो गी वह सब दिन में दस बजे से ले कर शाम पांच बजे तक ही
होगी ......यह उनकी आज की आदत नहीं हैं सन ७२ से मैं देख रहा हूँ ...
यहाँ तक उनकी बिटिया को भी मीटिंग के लिए पहले से वक्त लेना पड़ता है ...मैंने बहुत
सारे निर्देशक ...गीतकारों को देखा है जिनकी जबान बड़ी कच्ची होती है ...पर गुलज़ार साहब किसी को
अपशब्द देते नहीं देखा ....कमीने शब्द का इस्तेमाल करते हैं सिर्फ अपनों के लिए ।
जब भी किसी फिल्म का गीत लिखते हैं ......मुझे लगता है पहले वो कहानी से कन्विंस
होने चाहिये ...फिर उनको समय चाहिये कम से कम महीना भर का ...... एक बार की बात है मुझे
एक सीरियल के लिए गीत लिखवाना था .....बच्चों की कहानी थी .....विशाल भारतद्वाज का संगीत
था ...मैं भी बहुत डरा हुआ था .....करीब बीस दिन बीत चुका था ....मैंने डरते हुए पूछा भाई ......वो
रेकार्डिंग करनी थी ....फिर उन्होंने अपनी डायरी से कुछ लाइन सुनाई .........
सच कहता हूँ ...झूठा हूँ
झूठा हूँ .....सच कहता हूँ
कान मरोड़ के पूछे कोई
क्यों ..क्यों ..क्यों करता हूँ ...
इसकी रेकार्डिंग हुई ,,,,,,मेरे सीरियल में लगा भी ......पर किसी वजह से चैनेल पे टेलीकास्ट नहीं हुआ
जब भी उनके पास रहा कुछ न कुछ सीखा ही ............
मैं जो भी कुछ लिख रहा हूँ .......वह सब मेरा अपना अनुभव है ....उनके करीब रह कर
जो कुछ जाना ....
2 टिप्पणियां:
बेहद रोचक अनुभव...पारस पत्थर के संग जो रहेगा सोना ही बनेगा...आप खुशकिस्मत हैं जो आपको उनका इतना लम्बा साथ मिला...आप अपने संस्मरण थोडा लम्बा लिखा करें...आपकी पोस्ट तो कमेन्ट से भी छोटी होती है...
नीरज
सच है...अनुशासित व्यक्ति अपनी छाप छोड़ता है हर वक्त!!
अच्छा लगा आपका संस्मरण!!
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