मंगलवार, फ़रवरी 09, 2010

९१ कोजी होम

हम सभी सहायक ,गुलज़ार साहब की सिगरेट चुरा के पीते थे

सभी सहायक गरीब ही थे ,और सब को सिगरेट पीने का शौक था ...डड़ू , राज सिप्पी

को हम लोग बुलाते थे ....वही एक पैसे वाले थे ५५५ नाम की सिगरेट पीते थे ,बड़ी

मुश्किल से एक सिगरेट देते थे ....महंगी जो होती थी । दोपहर में कभी हम लोग बैठे हैं ,

और तलब लगी है सिगरेट की .......क्या किया जाय ....हम लोग इस ताक में रहते गुलज़ार साहब

कब बाथ रूम का इश्तेमाल करने बाहर आते है .....इसी दौरान कोई एक सहायक उनके पैकेट से

दो सिगरेट निकाल लाता था .....और माचिस हम अपने चपरासी रामू से मांग लेते थे .....हम लोग समझते

थे यह सब गुलज़ार साहब को मालूम नहीं होता होगा .......आज जाना यह सब हमारी भूल थी ....

वह कभी,.....किसी से कुछ नहीं कहते थे .....

हम सभी लोग उनके साथ बैठ कर शराब जरुर पीते थे ....पर सिगरेट उनके सामने नहीं पीते थे

वजह थी ....सिगरेट का धुंआ सामने फेंकना जो पड़ता है ....

उन दिनों को याद कर के लगता है ......बहुत अच्छा जीवन जिया हम सभी लोगो ने ॥

उन दिनों गुलज़ार साहब का मुख्य सहायक होना .....अपने आप बहुत बड़ी बात होती थी ......मैं तो

आज भी उसी नाम के सहारे जी रहा हूँ .......

1 टिप्पणी:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

रोचक संस्मरण...लिखते रहिये...कभी सिनेमा जगत की वो जानकारियां भी दीजिये जिसे आम सिनेमा प्रेमी कभी नहीं जान पाता...बहुत से ऐसे लोग भी होते होंगे जो होनहार होते हैं लेकिन उन्हें रौशनी नसीब नहीं होती और वो गुमनामी के अंधेरों में दम तोड़ देते हैं...आप तो ऐसे लोगों को जानते होंगे जो सिनेमा की राजनीति के शिकार हो गए...अब आप फ्री हैं खुल के लिख सकते हैं...
नीरज