गुलज़ार साहब के बारे में कुछ लिखना ,कभी -कभी बड़ा मुश्किल हो जाता है ,
उनके किस पहलु के बारे में लिखूं यही समझ में नहीं आ रहा है .....फिर भी ,
अभी हाल में इक दिन कहने लगे .....तुम्हारे पिता जी ,मुझे सौंप के गये थे तुम्हे ,
याद है की भूल गये ....... । मैंने हाँ में जवाब दिया .......याद है मुझे ......सन ७४ की
बात है .....उस समय गुलज़ार साहब गौतम एपार्टमेंट में रहते थे ....मेरे बाबू जी रेलवे
में मुलाजिम थे ....रेल का पास मिलता था फर्स्ट क्लास का ......मुझसे मिलने मुम्बई आते
थे ...इस बार वो माँ के साथ आये ....और मुझ से कहने लगे ....जिनके पास काम करते हो
कम से कम उन से तो मिलाओ ......और मैं उन्हें और माँ को ले गया ........
और वहीं बात चीत के दौरान बाबूजी जी ने कहा .....मैं तो बहुत दूर यहाँ से रहता हूँ
यह बेटा आप को देजाता हूँ अब आप ही इसके सब कुछ हैं .....इस घटना के तीन साल बाद ,मेरे
पिता का देहांत हो गया .....इस बात का जिक्र ...सन ७४ के बाद २००८ में गुलज़ार साहब ने मुझ से
की .....मैंने सोचा ...कैसे उनको ...यह सब याद रहा ....मैं तो इक मामूली सा इंसान हूँ ३४ साल के बाद
भी इक मामूली सी घटना उन्हें याद है .....
वजह .....मुझे नहीं मालूम .....सन ७४ में भी गुलज़ार थे .....और आज भी ...गुलज़ार हैं
1 टिप्पणी:
छोटी छोटी बातों को महत्व देना , उन्हें याद रखना अच्छे व्यक्तित्व की निशानी है
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