मुझे आज तक दादा जी के नाम से ही जानते हैं ,बहुत नामचीन थे ,देश का वह ईनाम भी जीत चुके थे .......जिसे जीतने के लिए ,बहुत मेहनत करनी पड़ती है . उन्होंने बहुत सारी कहानियाँ ,गीत फिल्मों के ,कवितायें ....कहाँ नहीं छपे ...सरकार उन्हें पेंसन भी देती थी .....उनका कमरा आज भी वैसे ही रखा हुआ है सजा के ,हम सब लोगों को कुछ पैसे भी मिलजाते हैं ,जब भी न्यूज चैनल वाले आते हैं ,पिता जी ने अपना एक रेट तै था .
एक दिन ,दादा जी के कमरे की सफाई कर रहा था ,दादा जी के कमरे की सफाई करने का जिम्मा मेरा था .कमरे में रखी हर ट्राफी को चमकाना पडता था .दो रोज बाद जो आज तक ,वाले आ रहे थे . दादा जी चप्पले जुते भी साफ़ करने पड़ते थे .दादा जी बहुत शौक़ीन किस्म के थे . उनकी किताबे फाईल भी साफ़ कर के रखना पडता था ,कईबार उनकी किताबों में कुछ अलग किताबे मिल जाती थी जिनकों हम लडके छिपा कर पढते हैं . अक्सर मैं उनकी किताबों को उलट पलट कर जरूर देखता था
4 टिप्पणियां:
किसी दिन मेरे पोते को भी मेरी आलमारी से मधुबाला की तस्वीर मिलेगी...ब्लॉग पर तो है ही...
नीरज
कोई उर्दू का जानकार मिला ??
अरे अंदाजा ही लगा लीजिये ,
kya khoob likha.....bhangaar saab kamal ka likhte hain aap
मैं उर्दू जानता हूँ आप उसकी कापी
मेरे ब्लाग पर पोस्ट कर दें वैसे
भंगार शब्द का अर्थ क्या है ?
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