मंगलवार, अप्रैल 06, 2010

खिलाड़ी

.......अधूरी जिन्दगी अभी तक जी रहा था मैं ....एक दिन ...माँ मुझे उठाने आयी ,

सुबह के नौ बज रहे थे । गुस्से में माँ बोल रही थी , क्या होगा तेरा ?आंटी जी लडका

है ना .....वीरू ....मालूम है ना ,तेरे साथ पढ़ता था ना .....? मैं कुछ बोला नहीं ....माँ

का ....रोजाना का प्रवचन था ....किसी ना किसी का जिक्र करना ....ऐसा लगता जैसे

....मेरे मोहल्ले , में मैं ही सब से बेकार लडका हूँ ......

मैं जल्दी से उठा .....और बाथ की तरफ भागा ,वरना माँ का भाषण चलता रहता

मेरी पढाई - लिखाई सब बेकार हो गयी ......जब पढ़ता था .... मोहल्ले का हर लडका मेरे पास

आता .....तब मेरी माँ ...बहुत खुश होती .....कोई अच्छी नौकरी मिल नहीं रही थी .......

घर में बैठा .... पढाई ही करता ...पर माँ नहीं समझती ....और कहती कब तक पढ़ेगा ....पैसा कमा ..!

.....पिता थे नहीं, उनकी आधी पेंसन माँ को मिलती ....उसी में गुज़र -बसर होता था ....आई पी यल

देख कर ....लगने लगा ..ख्वामखाह इतनी पढाई की ....और आगे भी पढ़ता ही जा रहा हूँ ....वीरू के सामने

सब बेकार है .....अब अगर क्रिकेट खेलना शुरू करूं .......तो क्या होगा ......?

यही सब मैं सोचता रहता .....जब की बचपन में मैं .......वीरू से अच्छा क्रिकेट खेलता था .....तब

माँ ने ही ने खेलना छुडवा दिया था .....अब कुछ हो सकता है ? इसका भी जवाब मुझे मालूम है .....

फिर भी मैंने क्रिकेट खेलना शुरू किया .......शाम को रोज पार्क में जाता ......अब माँ खुश थी ....वह समझ

रही थी , मैं भी वीरू शायद बन जाऊं .........इसी बीच मेरी माँ ....मेरी शादी की बात सोचने लगी .....

और उसने दो चार जगह बात चीत भी कर ली .......

अब माँ ,सीरियल ना देख कर .....आई पी यल क्रिकेट देखना ज्यादा पसंद करती .........इसी बीच

मुझे दिल्ली से एक ख़त आया ......जिसमें मुझे एक इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था .......मैंने माँ को कुछ भी

नहीं बताया .....यह किस नौकरी का इंटरव्यू है ......,बहुत मुश्किल से माँ ने ....पांच सौ रुपया दिया ....और

कहने लगी ......अब यह इंटरव्यू देना छोड़ ....कुछ नहीं होने वाला .......कोई खेल खेल , कम से कम कुछ तो

मिलेगा , इस बार कुछ नहीं हुआ ....तीस पार कर चुकूँगा .....फिर भारतीय प्रशानिक सेवा .....मेरे लिए

ख़तम हो जाएगी .....

चार दिन बाद , मैं दिल्ली से वापस आया ........माँ के पैर छुआ ......और बताया ...माँ अब तेरा

बेटा ....बहुत बड़ा सरकारी आफिसर हो गया है ...... माँ कुछ समझी नहीं ....वीरू से बड़ा आदमी थोड़े हो गया ?

गुस्से में माँ ने कहा । ............क्या कोतवाल हो गया ? मैंने माँ से कहा ....कोतवाल से भी बड़ा .....इतना बड़ा

की तेरे बेटे के आगे पीछे दस दस आदमी चलेंगें .....

.....ठीक है .....लेकिन जितने लोग वीरू को जानते हैं .......उतने तुझको जानेंगें ....नहीं ना .....! बस

माँ की बात सही लगी ....मैं हार गया ......मुझे खिलाड़ी ही बनना चाहिए .....और आज से एक और मंजिल

की तलाश शुरू हो गयी ......

1 टिप्पणी:

Shekhar Kumawat ने कहा…

BEHAD SUNDAR

BAHUT ACHA LAGA PAD KAR AAP

SHEKHAR KUMAWAT

http://kavyawani.blogspot.com/