गुरुवार, जून 24, 2010

तीन दिन का सफ़र

शाम के वक्त हमारी दलान में धूप आ जाती है ,कुंडा खटखटाया ...

दो चार बार खट खटखटाया तभी बुआ जी आवाज उभरी ....आवत

हई...बूढी हैं ...झुक कर चलती हैं ...धीरे -धीरे चलती हैं

आकर दरवाजे की विलार खोली (कुंडा )झुकी हुई सामने खड़ी मैंने

पैर छुए ...और घर के अंदर पहुंचा ....आँगन की दलान में एक चारपाई

बिछी थी ...उसी पे बैठ गया ....बुआ हैण्ड पाईप से पानी भरने लगी ....मैंने बुआ

को रोका ....आप बुआ रहने दें ....मैं पानी ले लेता हूँ ...पर वह मान नहीं रहीं थी

......मैंने पूछा घर में कोई है नहीं ?....सब तो डब्लू के संघे लखनऊ में है ....फरवरी

में डब्लू का एक्सिडेंट हो गया था ....दो महीने तक कोमा में था ...अभी कुछ बीस दिन

पहले होश में आया है .....मैंने कहा शैफ नहीं है ...एक मुसलमान लडका हमारे घर में

रहता है ....कहने लगी पिछवारे सोवत होई ....

दो बज ही रहा था .....मैंने बुआ को मिठाई निकाल कर दी .....मैंने खुद हैण्ड पाईप

से पानी निकाला ....खुद भी पीया और बुआ जी को भी पिलाया .....फिर कहने लगी .....

लल्ला की मेहरारू आई रहीं .....शब्जी रोटी बना दिए रहींन .......भुखाय त होबा ....कहा ता

निकार देई खाय ल्य....फिर हम ने कहा........ अब्य खाइत है ......सोचने लगा इतना बड़ा मकान

रहने वाला कोई नहीं .......एक समय था ....यही घर ....भरा रहता था ....बेकार ही बाबा जी

इतना बड़ा मकान बनवा कर गये .....लेकिन बुआ जी के कहने से हम दो भाइयों ने मेन्टेन कर

रखा है साल में एक दिन या दो दिन के लिए आते हैं .....मेरी पैदाइश इसी घर की है ....मेरी माँ

दुल्हन बन कर इसी घर में आई थी .....शायद इसी लिए मुझे और मेरे भाई को इस घर से प्यार है

.........पता नहीं कब बुआ एक थाली में रोटी और शब्जी ले कर आगयी ....मैं अपनी यादों से

वापस आया .....पास ही दौरी में प्याज रखी थी ....उठा और दो उठा लाया ....और पंजाबी स्टाइल

में तोड़ा .....भूख भी लगी थी ....खाने का वह लुफ्त आने लगा ....की मुम्बई का खाना भूल गया

1 टिप्पणी:

अजय कुमार ने कहा…

गांव से जुड़े रहिये,अच्छा है