खाना क़ा कर ....पिछवाड़े क़ा घर देखने लगा ....जो बन कर तैयार हो गया है
जब देखने गया ...बस रहने वाला ....एक दिन के लिए आता ...क्या रहे ......?
घर बिल्कुल शहर नुमा है । फिलहाल शैफ सोता है ,जिद्द करने लगा डिश खाराब
हो गया है ठीक करवा दीजिये .... ?मैंने कहा ठीक है ,शाम को मैकेनिक को बुला लेना
......घर के अंदर जो दलान है .....जहां बाबा सोते थे ,दादी सोती थी अब बुआ सोती हैं
...यह जगह कुछ इस तरह की है ...दो तरफ से हवा आती है ...मैं पास रखी कुर्सी पे बैठ
गया ....इतना बड़ा घर रहने वाला कोई नहीं है ....एक सन्नाटा चारो तरफ विखरा हुआ था
सारे कमरे खाली पड़े थे ....उसमें कोई भी समान भी नहीं था ...चार दीवारे एक दरवाजा
जो मुझे बचपन में बहुत ऊँचा लगता था .....अब छोटा हो गया ....
बुआ से बात करने लगा .....उनके अकेले पन के बारे में पूछने लगा..कैसे समय
बीतता है ?.......कहने लगी ....कुछ नहीं सोचती ....बस यही लगता है ,किसी दिन मैं भी
इसी बिस्तर पे....हमेसा के लिए सो जाउंगी ..जैसे बाबू अम्मा इसी विस्तर पे हमेसा के लिए
सो गये थे ।
मैंने कहा यह तो सब के साथ हो गा .....इसके अलावा और क्या सोचती हैं ?थोड़ी देर
चुप रहीं ....कुछ सोचती रहीं ......फिर बोली .....इतना बड़ा परिवार और रहने वाला कोई नहीं
......फिर एक चुप्पी ....जैसे लगा सो गयी हों ...उनका दर्द ,कोई क्या जाने .....किसी को कोई
फ़िक्र नहीं .....कैसे वह जी रहीं हैं ?
थका हुआ मैं भी था ....बैठे -बैठे मेरी भी आँख बंद होने लगी .....सो गया थोड़ी देर के लिए
आँख खुली तो देखा बुआ अपने बिस्तर पे नहीं थी ......झांक कर आँगन की तरफ देखा .....चौके में
चाय बना रहीं थी .....हैण्ड पाईप से ,मैंने पानी निकाला ...मुहं हाथ धोया ...और चौके में आ कर
बैठ गया ....बुआ ने अपने बूढ़े हाथों से चाय निकाल कर मुझे दिया .....अपना सारा काम खुद ही करती
हैं ...चाय बहुत ही अच्छी बनी थी ......वैसे एक बात है मेरी बुआ के हाथों में एक रस है ...खाना भी
उनके हाथ क़ा बहुत अच्छा होता है
शाम को सड़क पे गया .....कुछ लोगों को पैसा देना था ....घर बनवाने में जो समान आदि
लगा था ...यह आखरी पेमेंट था ....बजार में ही पद्दम की पान की दूकान पे बैठा ....अखबार में
रिपोर्टिंग करता है .....फेंकता बहुत है ....कल सुबह -सुबह लखनऊ जाना था ....अब एक
बात क़ा आराम हो गया जलालपुर से बस आती जो सीधा लखनऊ जाती है .....कुछ साल पहले तक
गाँव से पैदल रेलवे स्टेशन तक जाओ .....फिर ट्रेन क़ा इन्तजार करो .....कहीं शाम तक लखनऊ
पहुँच पाते .....अब तो ग्यारह बजे पहुँच जाते हैं
सुबह छे बजे ,हमारे गाँव से छुट जाती है बस .....पीछे से भर के आती है
मैंने पद्दम को कहा मेरे लिए एक सीट बुक करा दो ....जिससे मैं बैठ के लखनऊ तक जा सकूं
थोड़ी देर बजार में बैठ के घर आ गया ........आज बिजली आ रही थी ...पूरा घर उजाले से भरा हुआ था
.....खाना बन चुका था .....हाथ पैर धो के खाना खाया ......घर के दुआरे विस्तर लगा दिया गया था
बुआ ने मच्छर दानी लगवा दिया ......एक बिस्तर सैफ का भी लगा .....करीब दस बजे बिजली
चली गयी ......हवा बिल्कुल नहीं चल रही थी .......चाँद पूरा खिला हुआ था ......उमस थी ....
मच्छरदानी में एक आराम था ,मच्छर तो नहीं लग रहा था पर गर्म से नीद नहीं आ रही थी
........... कब नीद लग गयी पता भी नहीं चला ....जब आँख खुली ...हल्का सा उजाला
हो चुका था ....घडी देखी तो साढ़े चार बज रहे थे .......बुआ उठ चुकी थी ...जब मैं नहा धो के
आया बुआ चाय बना चुकी थीं ........उनका मोबाइल खो चुका था ....नया फोन खरीदने के लिए
पंद्रह सौ रुपया दिया .....और पटीदार के लडके से कहा .....बुआ के लिए एक नया फोन खरीद देना
.......बुआ के पैर छुआ और सडक की तरफ चल दिया .......
बस आयी ....ठसा -ठस भरी थी ......मुझे बैठने की जगह मिल गयी ......
3 टिप्पणियां:
सुन्दर लेखन।
बढ़िया वृतांत!
badhiya sansmaran .........
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