मेरे जेहन में बुआ क़ा ही ख़याल बार -बार घूम रहा था ...बुआ के पति ज़िंदा हैं
उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी । बुआ उनके साथ करीब पांचसे सात साल रही थी
बुआ उनको संतान नहीं दे पायी......फिर एक दिन उनका घर छोड़ के अपने पिता
के घर आ गयी .......फिर कभी नहीं अपने पति के घर गयी .....उनके तीन भाई हैं
बस नाम के हैं ...सब पढ़े लिखे थे .....बहुत बड़ी बड़ी नौकरी करते हैं ..लेकिन अपने तक
ही सीमित थे ...अपना सुख अपने बच्चे अपना परिवार ......
सच कहता हूँ .....कभी - कभी शर्म आती .....क्यों इस खानदान में जन्मा .....
बुआ क़ा ससुराल जमींदारों क़ा था ....बचपन में मैं अक्सर बुआ के घर जाता था, इनके
ससुर के पास बंदूख थी, शिकार के बहुत शौक़ीन थे .....मैं सातवीं क्लास में था ......नहीं
शायद ग्यारह क्लाश में पढ़ता था ....मैं बुआ के ससुराल गया था ......शाम को उनके
ससुर ने पूछा चिड़िया -विडिया खाते हैं ....? मैंने ...हाँ कह दिया.........और फिर शाम को
वह हारिल चिड़िया मार के लाये .....गाँव क़ा नाऊ आया ....उसने ही साफ़ -सफाई की
और एक मटकी में हारिल क़ा गोस्त बनने लगा ......करीब रात दस बजे गोस्त बन के
तैयार हुआ ....घर के बाहर बरांडे में यह सब कुछ हो रहा था .....मिटटी के कसोरे आये
उसमें गोस्त निकाला गया .....और घर के अंदर से रोटियाँ बन कर आने लगी ......मैं पहली
बार गोस्त खा रहा था । मसाले क़ा टेस्ट बहुत अच्छा था ,सोरबे से ही रोटियाँ खाता रहा .... ।
बस... अयोध्या के पास आ गयी थी ......अक्सर मैं जब भी गाँव से लखनऊ जाता हूँ
अयोध्या में हनुमान गढ़ी जरुर जाता हूँ ....यह आदत मुझे अपने बाबा जी से मिली .....आज
नहीं जा सका ........सीधा लखनऊ पहुंचना था ....कोर्ट में कुछ काम था .....
फैजाबाद से आगे बस जा पहुंची .....भूख लग गयी थी ......कंडक्टर से पूछा ...
अरे भाई खाना -वाना खिलाओगे या नहीं ? कहने लगा ...बस साहब रुदौली आने दीजिये
सब कुछ मिलेगा .....दस -पन्द्रह मिनट की बात है .......... ।
कल शाम जब मैं अपने गाँव के बजार में ,नाई की दूकान में दाढ़ी बनवा रहा था
गर्मी थी ...लाईट आ रही थी ...मैंने उससे से कहा ...फैन तो चला दो .....कहने लगा भैया बत्ती
थोड़ो आवत वाय ई तो यादव जी क़ा ....जनरेटर की बत्ती है ....मैं समझा नहीं ....फिर उसने
खुल कर बताया .......उ क़ा है ....रोज साँझ क़ा लाईट चली जात है ....यादव जी एक जनरेटर
लगा दीन है .......बस व्ही से .....लाईट आवत है ....एक बल्ब का पांच रुपया लेत हैं ...रोज उनका
आदमी शाम क़ा पैसा ले के जात है ....और हम लोग की बजार में डेढ़ सौ दूकान तो है ही ...अब तो
बजार रात नौ बजे तक चलत है...और यादव जी भी खूब पैसा कमा रहें हैं ।
रुदौली आ गया था ....बस एक दूकान के पास रुक गयी ...सभी लोग उतरे सभी
ने नाश्ता किया ,मैंने भी दो समोसे और एक टिक्की ली ......एक बोतल पानी ली और बस में
आ के बैठ गया .....बस चल दी .......
लखनऊ करीब बारह बजे पहुँच गये .......
3 टिप्पणियां:
सुन्दर लेखन।
यादव जी १५० दुकानों से बढ़िया कमा ले रहे हैं..चलने दिजिये वृतांत..बढ़िया है.
आपकी यात्रा में हम साथ हैं
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