मंगलवार, जुलाई 27, 2010

९१ कोजी होम

........सामने एक दुबला -पतला लडका खडा .....मुझे देखने लगा ,मैंने कहा .....

गुलज़ार साहब से मिलना है !,........एक पल को उसने कुछ सोचा ....और अंदर

आने को कहा ....अभी भी मेरे कपड़ों से पानी चू रहा था ...मैं अंदर पहुंचा और एक

जगह खड़ा हो गया ...रुमाल से मैंने अपना चेहरा साफ़ किया .....बालों से टपकता

हुआ पानी पोछा .......मेरे सामने एक हाल था ,जिसमें हलके हरे रंग क़ा कालीन बिछा

था ....बाएँ तरफ एक और कमरा था ....जहाँ नौकर गया था ....थोड़ी देर बाद जब लौटा

.....तो मुझे हाल में बैठने को कहने लगा ....

मैंने कहा ठीक है ....यहीं ठीक हूँ ......!

इतने में सफ़ेद कुरते और पैजामें ......में गुलज़ार साहब आये .....बगल के कमरे से निकल कर ,

मैंने हाथ जोड़ के नमश्कार किया .....और कुछ बात करने से पहले ,मैंने कहा ....सर यह

कुछ किताबें हैं .....जो रामलाल जी ने आप के लिए भिजवाया है ,किताबे मैंने उनकी तरफ

बढ़ा दिया ........उन्होंने एक नजर किताबों पे डाला ,फिर मेरी तरफ मुखातिब हो कर कहा

अंदर बैठो .....

वह हाल में आये .....उनके पीछे पीछे मैं भी आ गया ....भीगे पन का डर मेरे साथ

चिपका हुआ था ....इनका कालीन ख़राब हो जाएगा ....पास के सोफे नुमा कुछ बैठने क़ा था

मैं उस पर बैठ गया ...गुलज़ार साहब बगल वाले सोफे नुमा कुर्सी पे बैठ गये ....मुझे भीगा हुआ

जान के ......अकबर ....अकबर कह के .....किसी को बुलाया .....वही आदमी आ कर खड़ा हो

गया जिसने दरवाजा खोला था ....अकबर चाय ले कर आना ......!

........गुलज़ार साहब ने फिर रामलाल जी के बारे में पूछा .....मैंने उन्हें बताया ....वह अच्छे से

हैं ....और आप के लिए यह किताबें भेजी .....यह उनकी कहानिओं का संकलन है। ... रामलाल जी

की कहानियाँ तो जादा तर ट्रेन के सफ़र में घटित होती हैं .....गुलज़ार साहब .......मुझसे जानना

चाहते थे ......मैंने उन्हें बताया वह रेलवे में टी सी हैं .......और अक्सर सफ़र में ही रहते हैं यही कारण है

...........अकबर चाय ले कर आ गया था ......और साथ गर्म गर्म पकौड़ियाँ ले कर भी

.........यह मैं नहीं समझा ....इतनी खातिर .....? मैंने अपने बारे में बताया .....मैं पूना से फिल्म

की पढाई कर रहा हूँ ......यह वह समय था, फिल्म की पढाई को ....अजीबो गरीब ढंग से लेते थे फिल्म

के लोग लेकिन गुलज़ार साहब ....मेरे अपने .......नाम की फिल्म बना चुके थे ...........जिसमे सारे

एक्टर यफ टी आई से ही पढाई कर के आये थे ......इसी लिए ...मुझे अलग ढंग से देख रहे थे ...

........थोड़ी देर बाद गुलज़ार साहब से इज्जात ली ......और अपने दोस्त के घर की तरफ चल दिया

बाहर अभी भी बारिश हो रही थी ........अब भीगने का डर नहीं था ....गुलज़ार साहब से मिलने के बाद

एक ताकत सी मिल गयी थी .........जिसका एहसास ....मैं बयान नहीं कर सकता .....पहली बार जो

किसी निर्देशक ...गीतकार लेखक ...... मिल कर आया था ......

हवा की तरह पूना की तरफ चल दिया ......रात की गाडी थी एक दोस्त ....जो पंजाब के खन्ना शहर क़ा

था .....वी .टी स्टेशन पे हम दोनों मिले .....हम उसे के .सी .नाम से बुलाते थे ...उसके पिता पंजाब के

लिए फ़िल्में खरीद के सिनेमा हाल में चलाते थे ......पैसे वाले थे ....रात की दस बजे की ट्रेन थी ....तब

रिजर्बेशन सीटों का नहीं होता था ....मैंने उसे अपनी मुलाक़ात के बारे में बताया .....

......उसके लिए यह कोई बड़ी बात नहीं थी ....हम दोनों ऊपर की सीट पे सो गये ......सुबह आँख

खुली तो शिवाजी नगर नाम क़ा स्टेशन आ गया था ....यहाँ से यफ .टी .आई .नजदीक पड़ता था

जब मैंने अपना हैण्ड बैग उठाया ....तो हल्का महसूस हुआ ......खोल के देखा तो ....तीन पैंट तीन शर्ट

नहीं थी .....चोर चुरा ले गये थे .....बस एक टावेल और कुछ सेब पड़े थे .....एक झटका लगा ....अभी

जब लखनऊ गया था ......पिता जी सिलवा के दिया था ....हॉस्टल में कुछ और पुराने कपडे पड़े थे ...

...जिससे मेरा काम चल गया ....पर घर पे किसी को नहीं बताया .....



2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

दिलचस्प वाकया...वाह...फिर क्या हुआ?

नीरज

अजय कुमार ने कहा…

चलिये जो पहने थे वो बच गये ,वरना यहां तो-----