शुक्रवार, अगस्त 06, 2010

९१ कोजी होम

तभी महसूस किया अपनी पैंट की जेब का भारी होना ....हाथ डाल के देखा तो ...

घबरा गया....गुलज़ार साहब के घर की चाभी मेरी जेब में थी .....रात मैं

देना भूल गया था ......अब क्या करूँ .....?


मैं सीधा ....गुलज़ार साहब के घर पहुंचा .....घर खुला हुआ मिला .....साँस में

साँस आई ....डोर बेल दबाया ....अंदर से नौकर अकबर निकला .....मैंने ध्यान से उसकी
...
आँखों में झांक के देखा .....उसकी आँखों में कोई सवाल नहीं था .....मैंने ही पूछा ......

......
अकबर जब तुम सुबह आये ...तो साहब अंदर थे ...या .....? मेरा सवाल सुन कर

वह कुछ समझा नहीं .....और उलटा ही सवाल कर दिया ....यह आप क्या पूछ रहें हैं ?

......
मैंने उसे चाभिओं क़ा गुच्छा दिखाया .....चाभी देख कर वह भी सकते में गया

...
फिर साहब कैसे अंदर आये .....?यही तो मेरी भी समझ में नहीं रहा .............

......
वगैर कुछ और जाने मुझसे पूछा ....चाय लेंगे ? मैंने हाँ में ....सर हिला के जवाब दिया

......
वह किचन में चला गया .....मैं वहीं बैठा सोचने लगा .....गुलज़ार साहब कैसे

घर के अंदर आये होंगे ......? यही सब सोच रहा था .....तभी गुलज़ार साहब अपने कमरे से नहा

के बाहर निकले .....मुझे देख कर मेरे पास आये ...मुस्कराते हुए कहने लगे ...रात भर कहाँ

रहते हो ......? मैं कुछ नहीं बोला .....मैं तुम्हारे कमरे पे भी गया था ....तुम्हारी लैंड लेडी ने

नहीं बताया ?मैंने जेब से चाभी निकाली और उनकी तरफ बढ़ा दिया .....

........
शायद मेरा डरा हुआ चेहरा देख कर अकबर को कहा दो नास्ता लगाना ......

....
उसके बाद जब भी वह घर की चाभी मुझे देते .......मैं घबरा जाता ...फिर वही गलती मुझ से

हो .......आज भी इस घटना को सोच कर ...शर्मिन्दा हो जाता हूँ .....अभी मुझे सिर्फ एक ही साल हुआ


था ....उनके साथ काम करते हुए ....इस बिल्डिंग के नीचे एक छोटा सा प्ले ग्राउंड था .....जिसमें हम


सभी सहायक ,गुलज़ार साहब ,भूषण जी ,जीतेन्द्र जी ...सभी मिल कर बैडमिन्टन खेलते थे


.....अभी जीतेन्द्र जी की शादी नहीं हुई थी .....रोमांस कई चल रहे थे .....देखने में बहुत खूबसूरत


तो वह थे ही ......हम लोगों .से दोस्ताना व्योहार था .....गुलज़ार साहब ....उस समय भी बुजुर्ग


जैसे लगते थे ....... ।


एक बार की घटना है ......उस वक्त मैं शिवाजी पार्क के रोड नम्बर पाँच पे रहता था

खुश्बू फिल्म की शूटिंग चल रही थी मोहन स्टूडियो में .........देर रात तक शूटिंग चलती रही


...जब पैक हुआ .....रात का एक बज रहा था ......सभी लोग अपने अपने घरों को भाग रहे थे


मैं भी सोच रहा था ....शिवाजी पार्क तक कैसे जाया जाय ......सभी लोग जा चुके थे ....किसके


साथ पकडूँ ......यह शहर अभी तक मेरे लिए नया ही था .....ट्रेन का सफ़र या बस का सफ़र ...कैसे


क्या करूं ......टैक्सी वाले पैसे मेरे पास थे ...नहीं .....इसी उधेड़ -बुन में खड़ा था .....तभी जीतू जी


अपनी लाल रंग की इम्पाला से जाने को तैयार थे .....इस फिल्म के निर्माता थे ...इस लिए सब से


लास्ट में जारहे थे ....। मुझे देख कर उन्होंने मुझे बुलाया .....और पूछा ...कहाँ रहते हो ? मैंने बताया


तो कहने लगे मेरे साथ चलो ......उस समय वह कोलाबा में रहते थे और शिवाजी पार्क होते ही जायेंगे


मैं उनकी इम्पाला कार में बैठ गया ......उस समय उनका ड्राईवर शलीम था .....जो माहिम में कहीं रहता


है हम लोग चल दिए ......जीतू साहब थके हुए थे ....शायद बैठे -बैठे सो गये ....शलीम गाडी चलता हुआ


...जब माहिम पहुंचा ....उसने कार रोक दी .....जीतू साहब ने आँख खोली ......क्यों तेरा घर आ गया चल


उतर जा ......शलीम उतर कर चला गया .....अब हम दो लोग रह गये .....जीतू साहब ने कार स्टार्ट की


और चल दिए .......मैं भी आगे आकर बैठ गया .....अभी गाडी कुछ ही दूर चली होगी .....गाडी बंद हो गयी


.....................मैं उनकी तरफ देखने लगा ...उन्होंने कार कई बार स्टार्ट किया ....लेकिन कुछ नहीं हुआ


कुछ सोच कर जीतू साहब ने कहा ......चलो धक्का लगा के ...पास के पेट्रोल पंप तक चलते हैं


हम दोनों लोगो ने धक्का लगाना शुरू किया ....धीरे -धीरे जब पेट्रोल पंप पे पहुंचे ....तो वहाँकाम करने


वाले जीतू साहब को देख कर .....इस हाल में .....सकते में आगये .....हम लोगो ने कार को एक जगह


खडी की ......एक आदमी ने कार को देखा .....और उसने भी स्टार्ट कर देखा .......फिर उसने कहा


साहब इसमें पेट्रोल ख़तम हो गया ......पेट्रोल भरा लीजिये .....कार में पेट्रोल डाला गया .......


कार स्टार्ट की गयी ...और हम फिर से चल दिए ......फिर खुद ही कहने लगे ....इसके पेट्रोल क़ा


काँटा नहीं चलता ....सब मेरी ही गलती है ,पापा जी कहते हैं ...........फिर चुप हो गये ॥ मेरे घर


के नीचे छोड़ा और चल दिए .......रात क़ा तीन बज रहा था ...कमरे में पहुंचा ......कल शूटिंग नहीं थी


............जल्दी उठने की कोई जल्दी नहीं थी ....


मेरे साथ जो कुछ घटा ....वह सब कहीं ....अपने आप में शिक्छाप्रद है इसी समय की एक और


घटना है ......गुलज़ार साहब एक सहायक ......मुझसे बहुत बतमीजी से पेश आता था ....उम्र में मुझसे


बहुत छोटा था .....एक बार उसने जरा सी बात को लेकर मुझे गाली दे दी .......जो बर्दाश करने के


लायक नहीं था .....मैंने गुलज़ार साहब को सारी घटना से अवगत कराया ......


उन्होंने उसे बुलाया .......एक और सहायक को बुलाया और सच्चाई जाने की कोशिश की


सहायक ने कहा मजाक में दिया था .........यह सुन कार गुलज़ार साहब गुस्सा गये .....और कहने


लगे ......तुम मजाक में किसी को गाली दो गे .....क्यों ? उस सहायक के पास कोई जवाब नहीं था


और गुलज़ार साहब ने उस सहायक को निकाल दिया ......


मुझे उस दिन पता चला .......गुलज़ार साहब हैं क्या ? मैं भी अब चुप रहने लगा


कहीं अपने आप को गुनाहगार समझने लगा .....हिम्मत नहीं हो रही थी ......गुलज़ार साहब को


कह के वापस बुलाने को कहूँ .....मैं कहीं अपनों में बुरा हो गया ....


एक फिल्म निर्माता गुलज़ार साहब के साथ फिल्म बनाना चाहते थे ......उन्होंने


उससे कहा ......निर्देशक मेराज को ले लो ........मेराज मुख्य सहायक थे ......फिर गुलज़ार साहब


ने निर्माता को कहा ....लिखने और गीत क़ा काम मैं कार दूंगा .......निर्माता मान गया .....और


मेराज निर्देशक बन गये ....फिल्म थी "पलकों की छावं में " हीरो राजेश खन्ना ,हेमा मालनी ,


जीतेन्द्र ,रेखा ,अशरानी ,इतनी बड़ी कास्ट की फिल्म क़ा सुन कर ....मेराज एक बड़े निर्देशकों


में शामिल हो गये .....जिस सहायक को गुलज़ार साहब ने निकाला था ....उसको मेराज का मुख्य


सहायक बना दिया .....


...मैं .....इस घटना के बाद ,मैं गुलज़ार साहब क़ा तीसरा सहायक हो गया ....मुझे अब


अच्छी तनख्वाह मिलने लगी .....अच्छे दिन शुरू हो गये ।


खुश्बू की शूटिंग नटराज स्टूडियो में चल रही थी ....बरसात के दिन थे ......नटराज स्टूडियो के बगल


हाईवे बनने से नीचे हो गया था .......जब रात में शूटिंग पैक हुई .....नटराज स्टूडियो में कमर भर


पानी भर गया था ......एक छोटी सी नाव मंगाई गयी ....जिससे हेमा जी को बाहर निकाला गया


यह लास्ट डे था शूटिंग क़ा .था ...........


दो दिन बाद ....हम लोग आफिस में बैठे थे ......तभी एक खबर मिली की ......जीतू जी


हेमा जी शादी कर रहें हैं ........आगे की कहानी सभी को मालूम है ........मद्रास में दोनों एक ही फिल्म


की शूटिंग कर रहे थे ........





2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

हमें नहीं मालूम कभी जीतू जी और हेमा जी की शादी की बात भी उठी थी? हमने तो उनका नाम सदा धर्मेन्द्र जी के साथ सुना है...हाँ संजीव कुमार भी लाइन में थे ये भी मालूम है लेकिन जीतू? नयी बात पता चली...फिर क्या हुआ?
नीरज

अजय कुमार ने कहा…

बस ऐसे ही अंदाज में लिखते रहिये ।