सोमवार, अगस्त 09, 2010

९१ कोजी होम

............यह बिलकुल सच है ....मंडप तक हेमा जी और जीतू जी पहुँच चुके थे

पर एन वक्त पे शोभा जी (आज जो जीतू जी की पत्नी हैं ) धर्मेन्द्र जी के साथ आ

पहुंची ....शोभा जी जीतू जी का पहला प्यार थी .....धर्मेन्द्र जी ने बीच बचाव की

और शादी टूट गयी ......

खुश्बू फिल्म पूरी हो गयी ......रिलीज की तैयारी होने लगी .....तभी

जे .ओमप्रकाश जी ने गुलज़ार जी को साइन किया "आंधी " फिल्म बनाने के लिए

यह फिल्म छे महीने में पूरी करनी थी ......

जब भी गुलज़ार साहब को फिल्म की स्क्रिप्ट लिखनी होती ......वह दस

दिन के लिए कहीं बाहर चले जाते हैं .....और जब आते हैं ....फिल्म की पूरी स्क्रिप्ट

तैयार होती है । फिर हम सभी सहायक .....उसको हिंदी में लिखते हैं ,गुलज़ार साहब

अपनी स्क्रिप्ट को उर्दू .....जबान में लिखते हैं ......जब तक मेराज साहब थे सिर्फ उनको

ही उर्दू आती थी .....मेराज साहब निर्देशक बन गये थे .....समय की कमी थी ....एक और

साहब थे ....जिनका नाम ख्याल साहब था ......बहुत नेक इंसान थे ....बहुत अच्छी लिखावट

थी .....उन्हीं को हम सभी लोग बुला लेते थे ...चार -पांच दिन में पूरी स्क्रिप्ट लिख देते

थे .......

हम सभी के साथ एक मुश्किल थी .......गाहे -बगाहे जब गुलज़ार साहब फिल्म की स्क्रिप्ट

में चेंज करते थे संवाद में ....लिखते वह उर्दू में ही थे .....हम सभी ....उर्दू जानते थे नहीं .....फिर

शूटिंग में किसी उर्दू जानने वाले को खोजते ......

.......यही सब ...देख कर मैंने एक टीचर रखा ......जो मुझे उर्दू सिखाने आता था ....कुल चार महीने

लगे ....फिर मैं उर्दू पढ़ लेता था ....लिखने में थोड़ी सी दिक्कत होती थी ...आंधी फिल्म की

शूटिंग शुरू हो गयी ....संजीव कुमार जी थे और उनके साथ सुचित्रा सेन जी हिरोइन क़ा रोल कर

रहीं थी .....पहले दिन की शूटिंग ...होटल होलीडे इन में थी ......सुचित्रा सेन जी नशे की हालत

में होटल पहुँचती हैं ....और होटल में एक कमरा चाहती हैं रात भर के लिए ....इसी होटल के

सहायक मैनेजर संजीव कुमार जी हैं ......

रात को वेटर ने आकर संजीव कुमार जी को बताया ....जो कमरा आरती मैडम को

दिया था ....उस रूम क़ा नल खुला हुआ है ......किस तरह से ...बहता हुआ नल बंद किया गया

.....यह सब सुबह ....संजीव कुमार ने ....आरती (सुचित्रा सेन ) जी को बताया .....

....अब राज .यन सिप्पी मुख्य सहायक हो गये थे इस फिल्म के ....इसी फिल्म की

एक घटना है ....महबूब स्टूडियो में आंधी फिल्म क़ा सेट लगा हुआ था ...नार्मल शिफ्ट थी

संजीव कुमार समय पे नहीं आते थे .....नौ बजे की सिफ्ट में वह ग्यारह बजे तक आते थे

सभी लोग सेट पे उनके आने इन्तजार करते .....जब वह आते फिर कहीं जा कर शूटिंग शुरू

हो पाती .....गुलज़ार साहब को मालूम था ....इसी तरह रोज अगर शूटिंग लेट शुरू होगी

....फिल्म को समय पे पूरा नहीं किया जा सकता ......

आज हम लोग ...फिर संजीव कुमार जी का इन्तजार कर रहे थे ....बारह बज चुका था

और हरी भाई आभी तक नहीं आये थे .....करीब सवा बारह बजे हरी भाई पहुंचे .....जल्दी से

मेकप किया ....और सेट पे पहुँच गये ......पहला शाट लिया गया ......तभी एक आवाज सुनाई पड़ी

.....पैक अप .......किसी को कुछ नहीं समझ आया ......क्यों गुलज़ार साहब ने पैक अप किया

....संजीव कुमार ....समझ गये थे गुलज़ार साहब की नराजगी को .....संजीव कुमार कुछ

पूछते इस से पहले ......गुलज़ार साहब ने कहा "हरी कल किस समय आवोगे " ?

यह सुन कर संजीव कुमार बोले ...दस बजे ......सभी लोग अपने -अपने घर को चल दिए

हम लोग ....आफिस की तरफ चल दिए .....

......दुसरे दिन संजीव कुमार जी दस बजे आ गये थे ..... ।

और मेकअप कर के सेट पे आगये ...शूटिंग शुरू हो गयी ... लंच भी आधे घंटे

क़ा हुआ ....इस तरह से गुलज़ार साहब ने हरी भाई को वक्त पे आने पे मजबूर किया ...

जब की,.... दोनों लोग बहुत अच्छे दोस्त भी थे ....

.....दलीप साहब हमारे सेट पे एक बार आये थे .....सुचित्रा सेन जी से मिलने .....लंच

का टाइम होने वाला था । ...... दलीप साहब जब सेट पे पहुंचे .....शूटिंग रुक गयी ....मैंने भी

पहली बार दलीप साहब को इतने करीब देखा .....दलीप साहब और सुचित्रा सेन जी को लेकर फिल्म

बनी थी देवदास नाम की जिसमे पारो का किरदार ......सुचित्रा सेन जी ने निभाया था ......

.......दलीप साहब ने फिर गुलज़ार साहब को याद किया ......गुलज़ार साहब आये .....पुरानी यादे

उभर आयीं .....जब गुलज़ार साहब ने संघर्ष फिल्म के सवांद लिखे थे ,जिसमें दलीप साहब हीरो

थे ...संजीव कुमार जी भी थे ......वह फिल्म हिट नहीं हुई थी ......बनारस के पंडों कीकहानी थी

.............दलीप साहब कुछ देर रुकने के बाद ....चले गये और शूटिंग फिर से शुरू हुई ...

इसी फिल्म में एक सीन था जिसमे .....संजीव कुमार जी को एक झापड़ मारना

था ..... मनमोहन जी को.....और वह गिर पड़ते हैं ...... । यह बात भूषण जी को .......

जम नहीं रही थी ......एक झापड़ में कोई गिर नहीं सकता ........ । गुलज़ार साहब ने कहा

.......वह झापड़ भी ......झापड़ क्या है ....जो एक में आदमी को गिरने पे मजबूर न करे .....

भूषण जी मानने को तैयार नहीं थे इस बात को ...........गुलज़ार साहब ने

कहा .....ठीक है ...मैं मार के दिखाता हूँ ....देखता हूँ ....आप नीचे गिरते हैं की नहीं ....

.....भूषण जी बोल के फंस गये .......

फिल्म समय पे कम्पलीट हो गयी .....रिलीज भी हुई .....फिल्म पे खूब बहस

हुई ....लोग कहने लगे श्रीमती इन्द्रा जी को सोच के बनाई गयी है ....और दौर था संजय गाँधी का

फिल्म बैन हो गयी ....

गुलज़ार साहब की अगली फिल्म "मौसम " शुरू हो गयी .....इसमें भी संजीव कुमार

जी ही थे ......और साथ में शर्मिला टैगोर जी थी .....इसी फिल्म क़ा सेट राज कमल स्टूडियो में

लगा था ......मुझे गुलज़ार साहब ने कहा .....आंधी फिल्म मेट्रो थेअटर में चल रही थी ....दोषी नाम

के एकाउंट टेंट थे .......जो आंधी फिल्म के निर्माता के आफिस में काम करते थे .....सेट पे आये थे

उनके साथ मुझे गुलज़ार साहब ने भेज दिया ....आंधी फिल्म देखने के लिए .....निर्माता क़ा

कहना था ...नाईट सो ठीक से नहीं चल रहा है .....

मैं दोषी के साथ .....मेट्रो हाल में सो देखने पहुंचा ....हाल अच्छा खासा भरा हुआ था

मैं फिल्म देखने में खोया हुआ था ......फिल्म ख़तम हुई ......देखता हूँ ....दोषी अपनी सीट

पे नहीं है .........इधर उधर खोजा पर वह बन्दा नजर नहीं आया ....

मेरी जेब इतने पैसे नहीं थे की मैं अपने कमरे तक पहुँच सकूं ......रात की लास्ट ट्रेन भी

जा चुकी थी अब बस टैक्सी ही एक रास्ता थी .......पैदल ही चल दिया .....और सुबह चार बजे करीब

अपने रूम पे पहुंचा ........मैंने किसी को दोष नहीं दिया .....क्यों की दोषी का जो साथ था ....

....मौसम फिल्म में मैंने भी एक रोल किया था .....हुआ ऐसा कुछ .......


2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

दिलचस्प वाकये...लिखते रहें...लेकिन लगातार...यूँ तोड़ तोड़ कर संवाद जैसे न लिखें, ऐसे लिखे जैसे कहानी लिखते हैं...
नीरज

Unknown ने कहा…

Sir-mujhe to bahut achha lagta hai aapka jeevan parichay padhne me