........किचन चलाने के लिए ,इधर -उधर भागना शुरू किया । पहले मैं फिल्म डिविजन
गया ....उस समय वहां के चीफ प्रोडूसर श्री थापा साहब थे । वह बहुत हेल्प फुल थे ,मेरे
लिए .......मुझे फैमली प्लानिग की फिल्म दे दी बनाने के लिए ......पत्नी को लखनऊ भेज
दिया था .......थोड़ा बहुत खर्च तो कम हुआ ......एक इसी तरह की फिल्म में काम भी किया
....बस पैसा कैसे भी चाहिए था ......
एक दिन मैं जब गुलज़ार साहब से मिला .......तो मुझ से पूछा पत्नी कहाँ है ?मैंने बता दिया
लखनऊ गयी हैं ......फिर कहने लगे .....बंगलौर में फिल्म फेस्टिबल होने वाला है ....देखने
चलते हैं .......फिल्म देखने क़ा शौक तो बचपन से ही था ......गुलज़ार साहब भी दुखी थे
मीरा न चलने की वजह से ........
दुसरे दिन ही सवेरे मैं गुलज़ार साहब के घर जा पहुंचा ......मुझे नहीं मालूम था ,कैसे
हम लोग बंगलौर तक जायेंगे ......एक सूटकेश में मैंने अपने कुछ कपडे रख लिए थे ...पैसे के
नाम पे ,मेरे पास बत्तीस रूपये थे । गुलज़ार साहब से जब मिला तो कहने लगे ...कल चलेगें
अपना सूटकेश यहीं बंगले पे ही रख दो ......और रात में यहीं सो जाना .....फिर मैंने जान बुझ के
पूछ लिया ....हम लोग चलेंगे कैसे ....? कहने लगे कार से चलेगे .......बम्बई से बंगलौर तक
कार से मैं समझा नहीं .......इतनी दूरी ......
...पैसे के जुगाड़ में एक दोस्त के पास गया ......फिर फिल्म डिवीजन गया ....एक चेक सात सौ क़ा
मिल गया .....बैंक में जमा कर दिया ...
शाम को गुलज़ार साहब के घर पहुँच गया ....रात क़ा खाना उन्हीं के साथ खाया .....नीचे साउंड रूम
था, उसी में सो गया .....सुबह करीब चार बजे ...नौकर ने उठा दिया मुझे और कहने लगा ...साहब ने
कहा है .....तैयार हो जाइए अभी निकलना हो गा ...........मैंने घड़ी देखा तो चार बज रहें थे ...
मैं दस मिनट में तैयार हो गया ......उस समय गुलज़ार साहब के पास फियट कार थी ,मैंने भी
अपना समान भी रख दिया .....गुलज़ार साहब बाहर आये .......और ड्राइविंग सीट पे बैठ गये
मैं भी बैठ गया ......और कार चल दी ......मैंने पूछा भाई ....इतनी सुबह चलने की .......मेरी
बात काटते हुए कहने लगे ......सुबह -सुबह चलने में एक फायदा है ....कोई भीड़ नहीं मिलेगी
और सुबह -सुबह बम्बई से बाहर भी निकल जायेंगे ......पनवेल में चाय पियेंगे .......
उस समय न्यू मुम्बई बसा नहीं था ......पनवेल तक सिर्फ एक गाँव मिलता था ..बेलापुर ......
.............गुलज़ार साहब कार चला रहे थे ....मुझे तो चलानी भी नहीं आती थी उस समय , गुलज़ार
साहब ४४ साल के थे ...मैं उनसे बारह साल छोटा था ......मुझे एक दोस्त ,एक छोटे भाई ,एक बेटे
की तरह से देखते थे ......मेरे लिए तो वह हमेशा गुरू की तरह रहे , कल भी थे आज भी हैं .........
.......हम लोग शाम को बेलगावं पहुँच गये ......वहाँ एक होटल में दो कमरे लिए गये ......
एक कमरेमें मैंने समान आदि रखा ......नहाया धोया ....गुलज़ार साहब के कमरे में पहुंचा ....वेटर
से खाना लाने को कहा .....तब मैं नान वेज था .....ड्रिंक्स भी आई ....थके भी थे ...खूब खाया भी गया
मैंने भी दो ड्रिंक्स लिया ......करीब दस बजे अपने कमरे में सोने चला गया मैं ......बिस्तर पे गिरते
,कब आँख लग गयी ,पता भी नहीं चला .....करीब रात दो बजे आँख खुली ,बहुत कास के प्यास लगी
थी .....उठा पानी पीया ...और फिर जा के सो गया ......
सुबह फिर ,हम लोग जल्दी उठ गये ......गाड़ी में समान रखवाया ......सुबह की पहली
चाय गुलज़ार साहब के कमरे ही पी ........कहने लगे नास्ता कहीं रस्ते में करेंगे ......फिर निकल पड़े
हम लोग .....बंगलौर की तरफ ......रास्ते में हम लोग ...बहुत कम बात करते थे ......बल्कि
कोई बात शुरू गुलज़ार साहब ही करते थे ....मेरे पास कहने को बहुत कुछ कम ही होता था .....
शाम होते - होते हम लोग बंगलौर के करीब पहुँच चुके थे ....हम लोग एक होटल में
कुछ खाने के लिए रुक गये ,गुलज़ार साहब कहने लगे .....यहीं नास्ता करते हैं ....रात को हम
लोग निकलेगें ,मैं समझा नहीं वह ऐसा क्यों कह रहे हैं ? कोई वजह जरुर होगी .......मैं बचपन
से ही थोड़ा सा बेवकूफ किस्म क़ा था .......किसी बात क़ा मतलब थोड़ा देर से समझा करता था
अभी भी वही हाल है ......कभी -कभी यह आदत अच्छी भी लगती है .......क्यों ?
.....हम लोग रात में करीब नौ बजे ....वेस्ट एंड होटल पहुंचे .....गुलज़ार साहब ने एक
काटेज लिया .......एक काटेज में दो कमरे ,एक बरांडा होता था ......
कुल सात रोज यहाँ रहे ....बहुत सारी फ़िल्में देखी ......वापसी में दो दोस्त गुलज़ार साहब के
मिल गये .....वह लोग भी हमारे साथ वापस मुम्बई आये ........
गुलज़ार साहब के एक दोस्त थे , प्राणलाल मेहता ......वह बंगलौर में ही रहते थे
वह बम्बई आ गये ......और गुलज़ार साहब क़ा आफिस अब प्रोडक्शन आफिस बन गया
मेघना फिल्म्स के नाम का एक बैनर बनाया गया ......जिसमें फिल्मे निर्माण की जायेगी
पहली फिल्म शुरू हुई ......... किनारा नाम से .......जिसमें जितेन्द्र ....हेमा मालनी और धर्मेन्द्र
थे .........और गुलज़ार साहब का निर्देशन भी था और निर्माता भी थे ........
..............
गया ....उस समय वहां के चीफ प्रोडूसर श्री थापा साहब थे । वह बहुत हेल्प फुल थे ,मेरे
लिए .......मुझे फैमली प्लानिग की फिल्म दे दी बनाने के लिए ......पत्नी को लखनऊ भेज
दिया था .......थोड़ा बहुत खर्च तो कम हुआ ......एक इसी तरह की फिल्म में काम भी किया
....बस पैसा कैसे भी चाहिए था ......
एक दिन मैं जब गुलज़ार साहब से मिला .......तो मुझ से पूछा पत्नी कहाँ है ?मैंने बता दिया
लखनऊ गयी हैं ......फिर कहने लगे .....बंगलौर में फिल्म फेस्टिबल होने वाला है ....देखने
चलते हैं .......फिल्म देखने क़ा शौक तो बचपन से ही था ......गुलज़ार साहब भी दुखी थे
मीरा न चलने की वजह से ........
दुसरे दिन ही सवेरे मैं गुलज़ार साहब के घर जा पहुंचा ......मुझे नहीं मालूम था ,कैसे
हम लोग बंगलौर तक जायेंगे ......एक सूटकेश में मैंने अपने कुछ कपडे रख लिए थे ...पैसे के
नाम पे ,मेरे पास बत्तीस रूपये थे । गुलज़ार साहब से जब मिला तो कहने लगे ...कल चलेगें
अपना सूटकेश यहीं बंगले पे ही रख दो ......और रात में यहीं सो जाना .....फिर मैंने जान बुझ के
पूछ लिया ....हम लोग चलेंगे कैसे ....? कहने लगे कार से चलेगे .......बम्बई से बंगलौर तक
कार से मैं समझा नहीं .......इतनी दूरी ......
...पैसे के जुगाड़ में एक दोस्त के पास गया ......फिर फिल्म डिवीजन गया ....एक चेक सात सौ क़ा
मिल गया .....बैंक में जमा कर दिया ...
शाम को गुलज़ार साहब के घर पहुँच गया ....रात क़ा खाना उन्हीं के साथ खाया .....नीचे साउंड रूम
था, उसी में सो गया .....सुबह करीब चार बजे ...नौकर ने उठा दिया मुझे और कहने लगा ...साहब ने
कहा है .....तैयार हो जाइए अभी निकलना हो गा ...........मैंने घड़ी देखा तो चार बज रहें थे ...
मैं दस मिनट में तैयार हो गया ......उस समय गुलज़ार साहब के पास फियट कार थी ,मैंने भी
अपना समान भी रख दिया .....गुलज़ार साहब बाहर आये .......और ड्राइविंग सीट पे बैठ गये
मैं भी बैठ गया ......और कार चल दी ......मैंने पूछा भाई ....इतनी सुबह चलने की .......मेरी
बात काटते हुए कहने लगे ......सुबह -सुबह चलने में एक फायदा है ....कोई भीड़ नहीं मिलेगी
और सुबह -सुबह बम्बई से बाहर भी निकल जायेंगे ......पनवेल में चाय पियेंगे .......
उस समय न्यू मुम्बई बसा नहीं था ......पनवेल तक सिर्फ एक गाँव मिलता था ..बेलापुर ......
.............गुलज़ार साहब कार चला रहे थे ....मुझे तो चलानी भी नहीं आती थी उस समय , गुलज़ार
साहब ४४ साल के थे ...मैं उनसे बारह साल छोटा था ......मुझे एक दोस्त ,एक छोटे भाई ,एक बेटे
की तरह से देखते थे ......मेरे लिए तो वह हमेशा गुरू की तरह रहे , कल भी थे आज भी हैं .........
.......हम लोग शाम को बेलगावं पहुँच गये ......वहाँ एक होटल में दो कमरे लिए गये ......
एक कमरेमें मैंने समान आदि रखा ......नहाया धोया ....गुलज़ार साहब के कमरे में पहुंचा ....वेटर
से खाना लाने को कहा .....तब मैं नान वेज था .....ड्रिंक्स भी आई ....थके भी थे ...खूब खाया भी गया
मैंने भी दो ड्रिंक्स लिया ......करीब दस बजे अपने कमरे में सोने चला गया मैं ......बिस्तर पे गिरते
,कब आँख लग गयी ,पता भी नहीं चला .....करीब रात दो बजे आँख खुली ,बहुत कास के प्यास लगी
थी .....उठा पानी पीया ...और फिर जा के सो गया ......
सुबह फिर ,हम लोग जल्दी उठ गये ......गाड़ी में समान रखवाया ......सुबह की पहली
चाय गुलज़ार साहब के कमरे ही पी ........कहने लगे नास्ता कहीं रस्ते में करेंगे ......फिर निकल पड़े
हम लोग .....बंगलौर की तरफ ......रास्ते में हम लोग ...बहुत कम बात करते थे ......बल्कि
कोई बात शुरू गुलज़ार साहब ही करते थे ....मेरे पास कहने को बहुत कुछ कम ही होता था .....
शाम होते - होते हम लोग बंगलौर के करीब पहुँच चुके थे ....हम लोग एक होटल में
कुछ खाने के लिए रुक गये ,गुलज़ार साहब कहने लगे .....यहीं नास्ता करते हैं ....रात को हम
लोग निकलेगें ,मैं समझा नहीं वह ऐसा क्यों कह रहे हैं ? कोई वजह जरुर होगी .......मैं बचपन
से ही थोड़ा सा बेवकूफ किस्म क़ा था .......किसी बात क़ा मतलब थोड़ा देर से समझा करता था
अभी भी वही हाल है ......कभी -कभी यह आदत अच्छी भी लगती है .......क्यों ?
.....हम लोग रात में करीब नौ बजे ....वेस्ट एंड होटल पहुंचे .....गुलज़ार साहब ने एक
काटेज लिया .......एक काटेज में दो कमरे ,एक बरांडा होता था ......
कुल सात रोज यहाँ रहे ....बहुत सारी फ़िल्में देखी ......वापसी में दो दोस्त गुलज़ार साहब के
मिल गये .....वह लोग भी हमारे साथ वापस मुम्बई आये ........
गुलज़ार साहब के एक दोस्त थे , प्राणलाल मेहता ......वह बंगलौर में ही रहते थे
वह बम्बई आ गये ......और गुलज़ार साहब क़ा आफिस अब प्रोडक्शन आफिस बन गया
मेघना फिल्म्स के नाम का एक बैनर बनाया गया ......जिसमें फिल्मे निर्माण की जायेगी
पहली फिल्म शुरू हुई ......... किनारा नाम से .......जिसमें जितेन्द्र ....हेमा मालनी और धर्मेन्द्र
थे .........और गुलज़ार साहब का निर्देशन भी था और निर्माता भी थे ........
..............
1 टिप्पणी:
फेस्टिवल की बात , बंगलोर में सात दिन ,सब छूट गया । कम एडिट करके लिखिये ।
एक टिप्पणी भेजें