पहले दिन की शूटिंग में जितेन्द्र जी ,डाक्टर लागू और लीला मिश्रा जी थे ।
इस फिल्म की कहानी बहुत ही खूबसूरत थी ...एक ऎसी प्रेम कथा ,जिसमें नायक
की कार से एक हादसे में उस इंसान की मौत हो जाती है ........जिसकी प्रेमिका से
....अन्जाने में नायक इश्क कर बैठता है ........और जब नायक उसके करीब आना
चाहता है ......तब उसे पता चलता है .....उस इंसान से नफरत करती है ,जिसकी कार
से उसके प्रेमी की मौत हो गयी थी ........नायक डर जाता ,उसकी समझ में नहीं आता
........वह क्या करे ...? इसी उधेड़ -बुन में .....नायिका से मिलना कम कर देता है ।
उदास रहने लगा ....अकेला रहने लगा .....समझ में नहीं आता उसके, वह क्या
करे ...जिससे हेमा क़ा दिल जीत सके (हेमा जी नायिका का किरदार कर रहीं थी )
उसकी इसी कोशिश में ......एक दिन कैसे भी कर के .....हेमा जी को पता चल जाता है
...........नायक (जितेन्द्र )कौन है ......और गुस्से में भागती हैं और गिर जाती हैं और सर
में चोट लग जाने से .......अंधी हो जाती है .......इस घटना के बाद ....नायक अपने आप को
बहुत बड़ा दोषी समझता है
एक को मार दिया .....एक को अंधा बना दिया .......जिन्दगी से हतास हो चुका था
.....उसके अंकल डाक्टर लागू ने समझाया ....जिन्दगी जीने के लिए होती है ना की उससे डर
के भागने की .....अंकल क़ा सहारा मिला ....घर में साथ रहने वाली मौसी जिसने जन्म तो नहीं
दिया था ....लेकिन माँ के गुजर जाने के बाद से ...उन्होंने ही नायक की देख भाल की थी ...
...मौसी की आँखों में आंसू देख के ......फिर से एक बार .....उसके करीब जाने की कोशिश की
..............इस फिल्म के सहायक लेखक भूषण बनमाली जी थे .......गुलज़ार साहब के साए
की तरह थे ....इनकी भी जिन्दगी भी बहुत कमाल की थी .....उन्होंने उसे अपने ढंग से जिया
दिल्ली में कभी गुलज़ार साहब से मुलाक़ात हुई थी ......और कहीं उन्होंने यह कह दिया था
बम्बई आओ तो मेरे पास आना .......और कुछ सालों बाद हुआ भी ऐसा ....एक दिन दोपहर
में करीब एक बजे .....९१ कोजी होम में पहुँच गये ......अकबर नौकर मिला गुलज़ार साहब
कहीं गये थे .....अकबर ने अंदर बैठाया ......चाय की जगह भूषण जी ने दो बियर की बोतल
मंगवाई ......और पी कर वहीं सोफे पे सो गये .......शाम को अकबर ने उन्हें जगाया और
बतलाया साहब आ गये ......
गुलज़ार साहब मिले .....
(यह वह दौर था जब गुलज़ार साहब शादी शुदा नहीं थे ......)_
पूछा समान -वमान( नहीं था ).......बताया भूषण जी ने .....जो पहने हैं ....बस वही सब कुछ है
......शाम को गुलज़ार साहब उनको अपने साथ ,बजार ले कर गये .उनके लिए कपडे खरीदे
और फिर तब से वह गुलज़ार साहब के साथ ही रहने लगे ........
जब उनकी शादी हुई ....तब कहीं जा कर भूषण जी अलग कमरा ले कर रहने लगे .......दिन भर
गुलज़ार साहब के साथ रहते बस सोने के लिए कमरे पे जाते .......इतना सुलझा हुआ इंसान नहीं
देखा मैंने आज तक ......कडकी में कई बार उनसे पैसे की हेल्प ली ,मैंने गुलज़ार साहब कभी .....
पैसा नहीं मांगा......डर रहता ,अगर ना कह देगें ......वह दिन मेरे लिए, उनके लिए आखरी
हो जाएगा ......
..............भूषण जी .....मिर्जा ग़ालिब से कम नहीं थे .......आज वह इस दुनिया में नहीं हैं ...
लेकिन उनकी यादे मेरे साथ जुड़ी रहेंगी हमेशा ......
किनारा फिल्म की शूटिंग क़ा तीसरा या चौथा दिन था ........वरांडे में जीतू जी और भूषण जी
बैठे थे ......दूर तक समुन्द्र फैला हुआ था ......दोनों लोग बैठे सिगरेट पी रहे थे .....आज मैं
सिगरेट नहीं पीता हूँ ...(उस समय पीता था ) पता नहीं दोनों में क्या बात हुई ....दोनों लोगो
ने अपने सिगरेट के पैकेट समुन्द्र फेंक दिया ......मैं तो सिगरेट मांगने आया था यह देख कर
मैं कुछ समझा नहीं .....चुप चाप वापस चला गया .......
.......बाद में मालुम चला दोनों लोग ने अपने आपसे वादा किया था ......आज के बाद सिगरेट
नहीं पियेंगे .....यह तो उनलोगों की बात है .....बड़े लोग थे ,मैं तो एक सहायक था .......गुलज़ार
साहब के पार्टनर प्राण लाल मेहता ......बहुत अच्छे इंसान थे ....भूषण जी से खूब पटती थी ...
एक और पार्टनर थे ,शिदशानी जी .........
...................इसी फिल्म क़ा एक गीत था .....नाम गुम जाएगा ,
चेहरा बदल जाएगा ,
मेरी आवाज ही पहचान है ,
गर याद रहे .........
यह लाईने सुन कर .....इस सोच में पड़ जाता हूँ ......यह सोच आती कैसे है ?
तीस साल हो गये ,उनके साथ काम करते हुए .....नहीं जान पाया उनका दर्द ...
कभी -कभी मन बहलाने के लिए यह भी लिख देते हैं ....
सुतली से पतली ,मोरी कमरिया
कमरिया से ..बांधी मैंने गगरिया
....इतने सालो से नहीं जान पाया ...कब लिखते हैं ...........
हाँ वैसे वह सुबह दस बजे से ले कर शाम पांच बजे तक कुर्सी टेबल पे बैठते हैं ...तभी लिखते होंगे
यह उनको आदत अपने गुरु विमल दा से मिली थी ......कभी -कभी यह भी बताते हैं ....बहुत सालों तक
.......वह अपना परिचय ....विमल दा का सहायक के बतौर देते थे ....यह कब छूटा उन्हें नहीं याद है
........मैं तो आज तक ......उन्हीं क़ा सहायक बताता हूँ .......वजह ...उनके नाम से थोड़ी सी इज्जत
मिल जाती है ......
किनारा फिल्म की शूटिंग चल रही थी ........इसी दौर श्री गोपी कृषण जी से मुलाक़ात हुई
वह बतौर न्रत्य निर्देशक किनारा फिल्म में आये .......हेमा जी का एक डांस था ,जो स्टेज सो की तरह
था ....स्टेज पे हेमा जी डांस चल रहा है ....गोपी जी अवधी भाषा में ही बात करते थे ,मैं ही एक
था जो अवध क़ा था .....औवधी तो रामचंद्र जी भी थे .....लेकिन गोपी जी कहीं कृषण जी लगते थे
मैं उनके घर भी जाता था ......बहुत सीधे किस्म के थे अपने पैसे भी मांगने नहीं आते थे ......
मैंने अपनी बेटी को भी उनके डांस स्कूल में प्रवेश करा दिया था .....
....इसी बहाने उनसे मुलाक़ात होती थी .....खार दांडा रोड पे .....आज भी मकान खड़ा हुआ है
कभी वह घर हुआ करता था ....जब तक वह थे .....
.........हेमा जी वह गाना ख़तम हुआ .......
अगला शूटिंग का प्रोग्राम ......मांडू में था ,जहाँ पे रानी रूपमती और बाज बहादुर क़ा महल है
जहां उनकी प्रेम कहानी ने जन्म लिया था (मांडू इंदौर के करीब है )पहली बार ...मैं यहीं
धर्मेन्द्र जी से मिला .....वतौर गेस्ट रोल कर रहे थे ......हेमा जी के साथ कुछ सीन थे .....
अभी तक हेमा जी और धर्मेन्द्र जी शादी नहीं हुई थी ......
रोमांस की वह हद देखी जो ....धर्म जी अलावा कोई भी नहीं कर सकता था ......
उनमे इतना प्यार भरा हुआ था जो हर पल छलकता हुआ नजर आता था ,हम सभी लोगो को
जिसके गवाह थे .....
यहाँ से जब शूटिंग ख़तम हुई .......मेरी पत्नी लखनऊ में थी .....मैं मांडू से इंदौर होता हुआ
लखनऊ आया .......मांडू एक खूबसूरत जगह है ......जहां हर प्यार करने वाले को जाना चाहिए
बरसात के दिनों में और भी खूबसूरत हो जाता है ....जल महल और उसकी सीधी सीडियां .....
रानी रूपमती क़ा महल ...जहाँ से नर्मदा हो कर बहती थी ....अभी तो बहुत दूर चली गयी हैं
फिल्म करीब एक साल में पुरी हो गयी .......रिलीज भी हुई .......सब कुछ अच्छा था
फिर क्यों नहीं चली .......?यह मुझे आज तक समझ नहीं आया ....चलता क्या है ?
हाँ उस समय प्रकाश मेहरा जी ,मनमोहन देशाई जी या बासु चटर्जी जो बना रहे थे ......वही चल रहा
था ........
चलना या ना चलना ....किसी को मालूम नहीं होता ....विजय आन्नद जैसा निर्देशक
फ्लाप चल रहा था ......
आज भी देखे ....कौन हिट हो रहा है ......?
.........किनारा नहीं चली ......नुकशान को पूरा करने के लिए .....एक और फिल्म शुरू की नाम था
"किताब "
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