......किताब फिल्म ,एक बच्चे की कहानी है ,जो गाँव से शहर आया है अपनी पढाई करने
.......शहर में उसके जीजा जी और बड़ी बहन रहती हैं ,किस तरह वह ,अपने दीदी और जीजा जी
के झगड़ों से तंग आ कर ....घर से भाग जाता है .....अपने गाँव जाना चाहता है ,जहाँ उसकी माँ
रहती है ...
जीजा जी क़ा किरदार बँगला के सुपर स्टार उत्तम कुमार जी ने किया था ...और बहन क़ा रोल
विद्दा सिन्हा ने किया था ,और बच्चे के रोल में मास्टर राजू थे .........
बच्चों के साथ हम सहायक लोग भी बच्चे हो गये थे ......
जब और बच्चों क़ा चयन हो रहा था ......एक लडका आया ...जो उम्र में पंद्रह से ऊपर था
बच्चों में बच्चा नहीं लग रहा था ...पर हमारे सिंह साहब कहने लगे ...रख लो बहुत गरीब
घर क़ा है .....बच्चों के पीछे खड़ा का देना .....हम लोग मान गये ......वह बच्चा आज क़ा
मशहूर नामी निर्देशक अनीस व्ज्मी है .......
एक गाना याद आता है ...नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुठ्ठी में क्या है ,....मुठ्ठी में है तकदीर हमारी
पता नहीं चलता किसी के भाग्य क़ा .....इसीलिए बच्चों क़ा अनादर कभी नहीं करना चाहिए
........ऊतम कुमार जी के साथ काम करते हुए ...यह महसूस हुआ .....कोई सुपर स्टार ऐसे
नहीं बनता .......उसमें बहुत से गुण होते हैं ....वह बहुत कम बोलते थे .....अक्सर सेट पे कुछ पढ़ते
ही रहते थे ....किसी चीज की डिमांड नहीं होती थी ....वक्त पे सेट आ जाते थे ...
मैं उन्हें सीन देने जाता था ....हिन्दी थोड़ी मुश्किल से पढ़ पाते थे ......जिसमें मैं ही उनकी हेल्प
करता था .....अक्सर वह एक दिक्कत में फंसते थे ....सवांद में उर्दू अल्फाजों क़ा होना ....
इनकों बोलना उनके लिए मुश्किल खडी कर देता ......
अब मुझे कहा जाता इसको चेंज करवा दो .......अब दूसरी दिक्कत ,,गुलज़ार साहब को कहना
कैसी भी कर के ....मुझे ही गुलज़ार साहब के पास जाता और उनको बताता .....फिर दुसरा शब्द
लिखने से पहले मुझे कहते ......बताओ .....कोई शब्द ......मैं कुछ सोचता तब तक वह ....लिख देते
एक हिंदी का शब्द .....हम सब की मुश्किलें हल हो जाती ......
हम लोग पनवेल रेलवे स्टेशन पे शूटिंग कर रहे थे .....कुछ सीन चलती ट्रेन में थे .......दिन भर
शूटिंग चली ......एक सीन बाकी था ......और इंजन जो था.
वह इस्टीम क़ा था ....उसमें पानी की जरूरत
होती है .....और उसमें पानी ख़तम हो चुका था .....पनवेल में पानी भरने की सुभिधा नहीं थी ...
इंजन को थाना जाना था .....वहाँ से पानी भर के आना था ,और करीब दो घंटे लग जाते ...अब एक
ही रास्ता था .....शूटिंग कल की जाय ......
गुलज़ार साहब ने बाल्टियां मंगवाई ........जहाँ पे इंजन खड़ा था ,वहीं पास में एक तलाब था
सभी लोग लाइन में खड़े हो गये ......तलाब से ले कर इंजन तक ,सभी के हाथ में एक -एक
बाल्टी .........पानी तलाब से भरा जाता और एक -एक हाथ से होता हुआ ....इंजन तक पहुंचता
इंजन की टंकी भरी गयी .......और बचा हुआ सीन पूरा हुआ ...........
एक बार हम लोग मोहन स्टूडियो में शूटिंग कर रहे थे .....एक मिठाई की दूकान पे मास्टर राजू
आता है ...हलवाई को जलेबी बनाते देख कर .....उससे कहता है .......मुझे यह सिखा सकते हो ?
हलवाई जब संवाद बोलता है ,तो जलेबी बनाना भूल जाता है ...और गुलजार साहब कट बोल देते हैं
और जब जलेबी बनता है तो संवाद बोलना भूल जाता है .......गुलज़ार साहब ने हम सहायकओं की
तरफ देखा .......उनका मतलब था कौन इसको ले कर आया है ? वैसे गुलज़ार साहब पहले मिल भी
चुके थे ......इस कलाकार क़ा नाम अलबेला था .....मेरी पहचान क़ा था काफी काम भी कर चुका था
पता नहीं क्यों संवाद भूल रहा था ....मैंने गुलज़ार साहब को बताया मैं ही ले कर आया हूँ .......
पहले वह सीन को एक ही शाट में ले रहे थे .......भूलने की वजह से .....शाट डीविजन कर दिया
और कट -कट कर के लेने लगे....... ।
इस फिल्म का एक गीत है जो मुझे बहुत अच्छा लगता है जिसे पंचम जी ने गाया (आर .डी
बर्मन )गीत कुछ इस तरह था :
धन्नों की आँखों में ,है रात क़ा सुरमा
और चाँद क़ा चुम्मा ,
धन्नों की आँखों में है रात क़ा सुरमा ......
ज़हरीली तेरे बिना रात लगे
छाला पड़े आग जैसे
चाँद पे जो हाथ लगे
धन्नों क़ा गुस्सा है
पीर क़ा जुम्मा ......
और चाँद क़ा चुम्मा ...
यह गीत राम मोहन जी इंजन ड्राइवर क़ा रोल कर रहे थे उन पर फिल्माया गया था
बहुत सारे छोटे बड़े हादसे हैं जो आधे याद हैं आधे भूल चुका हूँ ........हाँ ...एक सीन ख़याल
में आया ......मास्टर राजू के साथ एक लडका पढ़ता था ......जिसके बड़े भाई को दिखाना था
फास्ट म्यूजिक क़ा शौकीन है ....और घर में छुप के सिगरेट पीता है ,
इस रोल के लिए ......किसको ले .....? आखिर ....गुलज़ार साहब ने खुद ही कहा ...यह किरदार
चंदू करेगा .....चंदू यानि (यन.चद्रा)हम लोग उन्हें चंदू ही बुलाते थे वैसे उनका असली नाम है
चंद्रशेखर नार्वेकर ...........
फिल्म यह चार महीने में पुरी हो गयी ........
रिलीज भी हुई ...........नुकशान हुआ .....इतना नुकशान गुलज़ार साहब कर्जदार बन गये
अब एक ही रास्ता था ......अपना सब कुछ बेच दे .......दोनों फिल्मों किनारा और किताब के
सारे राइट्स प्राण लाल मेहता को दे दिया .......और इस फिल्मी निर्माण से दूर हो गये ....
हम सहायक फिर खाली हो गये .........कुछ महीनों बाद "नमकीन " फिल्म शुरू हुई.........
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