शुक्रवार, अक्तूबर 22, 2010

९१ कोजी होम

आफिस में खाली बैठना ...(.इस दौर में हम सभी को आफिस आना पड़ता था )बोरियत

जरुर होती था ,पर किया क्या जा सकता था .....? कुछ नहीं ....नौकरी छोड़ दो .....

पैसों की दिक्कत शुरू हो गयी थी ,मेरे अलावा और सहायक जो थे ,सब पैसे वाले थे ।

दो महीने गुज़र गये ,कहीं से कोई आस नज़र नहीं आ रही थी ,शादी भी हो चुकी

थी ,बेटी टुनी भी हो चुकी थी । मुझे लगा ,इस फिल्म के अलावा कुछ और भी करना चाहिए

........इसी दौरान ,दीप्ती नवल जी ने एक आफर दिया .....मैनेजर बनने क़ा ......बहुत सोचा।

वह .....मेरी बहुत शुभचिंतक थी .....मैंने उनको हाँ ...कह दिया ......यह सब गुलज़ार साहब

को नहीं बताया ......और यह सब एक फिल्मी पेपर में निकल गया ,और फोन नंबर गुलज़ार

साहब के आफिस क़ा था .........कुछ दिनों बाद यह सब उनको पता चल गया ,मुझे तो कुछ नहीं

कहा .....दीप्ती नवल को डांट लगायी ......दीप्ती ने मुझे आ के बताया ...भई गुलज़ार साहब बहुत

नराज़ हो रहे थे ......कह रहे थे .....मालूम है वह यफ .टी .आई .से डिप्लोमा कर के आया है और

तुम उसे अपना मैनेजर बना रही हो .....

कुल तीन महीने उनके साथ काम किया .....फिर गुलज़ार साहब को वगैर बताये तीन

महीने ही कर पाया .......और फिल्म नमकीन शुरू हो गयी ,गुलज़ार साहब की फिल्मो के नाम

बहुत नमकीन होते हैं ......बाहर की दुनिया में ....लोग हमें से पूछते .....गुलज़ार साहब यह नाम

कैसे रखते हैं ? हम कहते ....यही सब सीखने के लिए ...उनके पास सहायक लगे हैं

नमकीन फिल्म का पहला सेट फिल्म सिटी में लेक पास की पहाडी के ऊपर लगा था

......गाने से शूटिंग शुरू हुई .....तीन बहने मिल कर मसाला कूटते हुए गाती हैं

बड़ी बहन रेखा जी थीं ,दूसरी बहन शबाना जी ,और तीसरी बहन थी किरण विराले और माँ का

किरदार कर रहीं थी वहीदा रहमान जी ........

शूटिंग क़ा दूसरा दिन था ,कुछ रिपोर्टर आये थे .....रेखा जी का कहना था एक ख़ास रिपोर्टर

को सेट पे से जाने को कह दें .....शूटिंग रुक गयी ....रेखा जी घर चली गयीं ...।

रेखा जी नहीं आयीं ......उनकी जगह शर्मीला टैगोर जी आ गयी और फिर से गाने की शूटिंग शुरू

हो गयी .......

अब शर्मिला जी के साथ शूटिंग होने लगी ,शर्मिला जी कभी -कदार अपने बेटे शैफ के साथ

शूटिंग पे आतीं थी ,शैफ सेट पे इधर -उधर खेलता रहता ,बोर हो के माँ को तंग करता ,फिर वह

अपनी हेयेर ड्रेसर को कहती इसे सभाल ,उनकी हेयेर ड्रेसर मीना थी ....वह भी कितना शैफ को

सभालती, तंग आ कर .....वापस सेट पे आ जाती । शर्मिला जी का शाट चल ही रहा होता .....मुझे कहा

इसे मेरे ड्राइवर के पास छोड़ आवो ......मैं शैफ को ले कर ...आँगन के पार जा ही रहा था ,

तभी एक मेढक का बच्चा दिखा . शैफ उसके पीछे भागा...मैंने उस मेढक को पकड के उसके पैरों में

धागा बाँध दिया ...लंबा सा और शैफ के हाथ में थमा दिया .......शैफ सेट के आँगन में खेलता रहा

............उसके बाद जब भी सेट पे आता ,मुझे देख कर कहता वही खिलौना फिर से बना के दो

.......आज शायद वह भूल चुका होगा ....उसे याद भी नहीं होगा .....

नमकीन फिल्म को बनते -बनते करीब दो साल लग गये .....इस फिल्म की आउट डोर

शूटिंग कुल्लू - मनाली में थी ....सितम्बर के महीने में हम लोग गये थे । सेबों का मौसम था ...

बगीचों सेब -ही- सेब लगे थे व्यास नदी क़ा किनारे का होटल था ....रात को नदी क़ा शोर एक धुन

जैसा लगता था कभी मद्धम हो जाता कभी अचानक सब कुछ बदल जाता ...

एक रोज हम सभी लोग कुल्लू में शूटिंग कर रहे थे .....अच्छी खासी धूप खिली थी ,पता नहीं कहाँ

से बादल आ गये और लगे बरसने .....शूटिंग रुक गयी व्यास नदी क़ा किनारा था पुल के पास ही एक

दूकान के किनारे हम लोग खड़े थे .....अचानक व्यास नदी क़ा पानी मटमैला हो गया हो गया ...और

पानी भी बढ़ गया ......और उस पानी में मछलियाँ आ गयी हम सभी लोगो ने मछलियाँ पकडनी शुरू

कर दिया ....जैसे लूट मच गयी हो...हम सभी लोगो ने काफी मछली पकड ली थी ......

हमारे साथ रमेस विश्वास नाम क़ा प्रोडकसन क़ा आदमी था ....उसने कहा आज मैं आप सब

लोगों को ...फ़िस करी खिलाउंगा .......और उस रात मछली की दावत उडी

हम लोगों को बीस रुपया मिलता था पाकेट मनी, जिसे हम सभी लोग सभाल के रखते थे ...और शूटिंग

ख़त्म होने के बाद शाम को मौज मस्ती करते थे ....एक शाम हमारे एक सहायक ने ...जंगली

झाड़ों की पत्तिओं से कुछ निकाला ...उन पत्तिओं को हाथ पे रगड़ने से कालाकाला कुछ लग जाता है

और रगड़ के हाथ पे निकाल के सिगरेट में भर के पीता था ....और एक शाम मैंने भी पी ...और उसके

बाद जो हुआ ...उसका ब्यान करना मुश्किल है बाद में पता चला वह चरस थी ....

.........वह उम्र ही ऐसी थी ....जो इस तरह की गल्तियाँ कर ही लेता था ......आज जब मुड़ के देखता हूँ

एक झटका सा लगता है ....पहली बार मैंने गणेश जी एक छोटी सी मूर्ती खरीदी जो आज तक मेरे

घर के मंदिर में है ...जिनकी मैं पूजा करता हूँ .....मनाली में एक छोटा सा बजार था वहीं से लिया था

.....सुबह -सुबह हम लोगों को शूटिंग के लिए ,रोहतांग पास जाना था जहां पे बहुत ठण्ड होती है

शबाना आजमी पे एक गीत फिल्माना था ......वैसा उनका किरदार एक गूंगी लड़की की कहानी थी

रोहतांग पास एक मैदान नुमा जगह है बीचो बीच में एक मंदिर है जहाँ से व्यास नदी क़ा उद्गम है

यह एक ऎसी जगह है जहाँ तीन बजे के बाद रहना नामुमकिन हो जाता है ठण्ड इतनी बढ़ जाती है

की वहाँ से भागने में ही समझदारी होती है जिस सन में हम लोग गये थे ....वहाँ कुछ नहीं था ,

अब ...लोग कहते हैं बहुत कुछ बदल गया .......

बारह दिन की शूटिंग ख़तम हो चुकी थी .......हम सभी लोग खूब थक चुके थे ....सुबह बस

से हम लोगों अम्बाला तक जाना था वहाँ से ट्रेन से मुम्बई तक पहुंचना था ......शाम को हम लोग

अम्बाला पहुंचे हम लोग थक चुके थे ......घुमावदार सड़कों से आये थे इस लिए सर भी घूम रहा था

....कुछ खाने का मन नहीं कर रहा था ....चंदू ने कहा चलो बाहर टहल के आते हैं .....

हम दोनों स्टेशन से बाहर आये .....खाने के होटलों की भर मार था ....मुर्गे की टाँगे लटकी हुईं थी

चंदू का मन लल्चा गया ...और मुझसे कहने लगा ....चल कुछ खाते हैं .....दोनों एक दूकान में पहुंचे

सरदार जी ने पंजाबी लहजे में पूछा क्या खाओगे ....?

चंदू बोल पड़ा मुर्गा खिलाओ ......

सरदार जी ने पूछा कुछ पीने को दूँ ?

हम समझ गये ....यह शराब की बात कर रहा था ...

चंदू बोल पड़ा .....एक क्वाटर रम क़ा दो .......

मैंने उसको समझाया यार ट्रेन में अभी चढना है .....बोला ....छोड़ ना ...

फिर हम दोनों ने पिया और खूब खाया ....

हम दोनों पे ...शराब क़ा नशा ....खाने क़ा नशा दोनों चढ़ चुके थे ।

स्टेशन ,पहुंचे जो पेटियां सेबों की लाये थे ,उनको रख के हम दोनों लेट गये .....राम जो हमारा

स्पाटबॉय था उससे कह दिया जब ट्रेन आये हमें जगा देना ......हम दोनों इस तरह सोये की ........

....सुबह राम ने बताया कैसे उसने हम दोनों को ,ट्रेन आने पे उठाया था .......और कैसे बैठाया

हम लोगों को भी हल्का -हल्का याद भी था ...किस तरह राम ने कितनी मुश्किल से ट्रेन में लिटाया

था ......










1 टिप्पणी:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत ही रोचक वर्णन....

नीरज