बीता हुआ कल , अपने आप में एक सुखद मंजर होता है । उनको याद कर के
जीने में बहुत मजा आता है । लिबास फिल्म के निर्माता विकास मोहन जी थे ,
हमारे आफिस में आये ......गुलज़ार साहब उनके साथ फिल्म नहीं करना चाहते थे
लेकिन गंगाधर के समझाने पे हाँ कहना पड़ा साहब को (गंगाधर , गुलज़ार साहब के
मैनेजर थे उस समय )समझाया क्या है पैसो की किल्लत है ,यह पेमेंट देना है वह
बाकी है .......
लिबास फिल्म शुरू हुई ,नसीर साहब ,राज बब्बर और शबाना आजमी थे .....
पहला सेट नसीर भाई के घर क़ा है ,जो मुम्बई में एक फ़्लैट में रहते हैं ........
अपनी पत्नी शबाना के साथ ......दस रोज शूटिंग का प्रोग्राम बना ,मैं मुख्य सहायक था
इस फिल्म क़ा .....आर्ट डायरेक्टर अजीत वनर्जीजी थे ........उन्होंने राही साहब के फ़्लैट को
खूब अच्छी तरह से सजा दिया .........(राही साहब ,गुलज़ार साहब के बहुत ख़ास दोस्तों में
थे )........जब शबाना जी सेट पे आयीं तो उन्हें सेट बिल्कुल ही पसंद नहीं आया .....और कहने
लगी .........यह सेट मेरे मुताबिक़ नहीं है ? और निर्माता से दस हजार रूपये लिए और पूरा दिन
खरीद दारी करती रहीं ....उस दिन शूटिंग नहीं हुई .........विकाश मोहन का मुंह सूजा रहा .....
दुसरे दिन से शूटिंग शुरू हुई .........जब मैं पूना में था .....शबाना जी भी एक्टिंग का
कोर्स कर रहीं थी ......मेरी पहचान वहीं से थी .....लेकिन सेट पे सीधे मुंह बात तक नहीं करती थी
जैसे कह रहीं हो .....देखो मैं तुमसे कहीं आगे निकल गयी हूँ ........
इस सेट पे मेरी पहचान राज बब्बर जी हुई ........और इस पहचान ने अगले कई
सालो मेरी बहुत हेल्प की .......मैं सहारा चैनेल में लगा ......उन्होंने मुझे जुड़ने को कहा ......कहीं
बहुत ज्यादा हेल्पफुल इंसान हैं .......
इसी फिल्म के दौरान मेरा बड़ा बेटा पैदा हुआ ........लेकिन छे दिन बाद मेरे दादा जी
स्वर्गवास हो गया ......वह ८३ साल के थे .....किसी ने सही कहा है दुःख के बाद सुख आता है कभी
कभी सुख के बाद दुःख भी आता है .......
3 टिप्पणियां:
bilkul sahi kaha aapne
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
रोचक वर्णन...जरा विस्तार से लिखिए...पोस्ट पढते ही खतम हो जाती है...पूरा मज़ा नहीं आता...आप समझ रहे हैं न?
नीरज
शूटिंग के दौरान घटी घटनाओं को थोड़ा विस्तार से लिखिये ।
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