शुक्रवार, नवंबर 19, 2010

९१ कोजी होम

सुभाष ज़ी के घर की तरफ जा रहा था ,रह -रह के एक बात का ख़याल आ

रहा था .......एक वक्त था ,जब सुभाष जी ने मुझे कहा था ......अपने साथ

जुड़ने के लिए ......तब मैंने उन्हें ना कह दिया था .......गुलज़ार साहब के

साथ जो काम कर रहा था .......लोग सही कहते हैं ,दुनिया गोल है ......

आज वही देख रहा था ........एक डर भी सता रहा था .......ना कह दिया तो ?

एक बात जानता था ,सुभाष जी की पत्नी बहुत दयालु किस्म की हैं

मुझे जानती भी थीं .....मेरी मुश्किल को समझ जायेंगी .......और जरुर हेल्प

करेंगी ......फिलहाल अपने मन को समझाया .......भाभीजी जरुर मेरी सहायता करेंगी

................बहुत सालों बाद रेहाना भाभी जी से मिल रहा था .......किस ढंग से रिएक्ट

करेंगी नहीं मालूम .......क्लिफ बिल्डिंग में पहुंचा .......टाप फ्लोर पे रहते थे सुभाष जी

.......दरवाजा खुला एक नौकर सामने खड़ा .....मुझे घूरने लगा .....मैंने पूछा ... भाभी जी हैं ?

वह हाल में ही बैठी थी ......मुझे देख कर ,खुश हो कर ...कहा .....आओ मिश्राजी .........

मैं घर में पहुंचा .......बहुत दिनों बाद मिल रहा था .....मेरा ही हाल चाल पूछती रहीं ...बच्चों

के बारे जाना ....फिर उन्होंने पूछा ,काम कैसा चल रहा ....?खुद ही बोल पड़ी ,.....तुम तो

गुलज़ार जी के साथ हो .....?

बस यह पूछना था और मुझे अपना दर्द कहने क़ा मौक़ा मिल गया ........और मैंने

सीधे -सीधे कह दिया .....मैं बेकार हूँ ....गुलज़ार साहब ने अपना नया मुख्य सहायक रख लिया

और मुझे काम छोड़ना पड़ा ......इतना सुन कर ,कहने लगी ......घर चलाना तो मुश्किल हो

गया होगा ? मैं चुप रहा ......मेरी चुप्पी को जान के कहने लगी ....शुभाष जी को ज्वाइन का लो

.....कल सन्डे है ....आ कर शुभाष जी से मिल लो मैं कह दूंगी ...........

भाभी जी सच में देवी का ही रूप हैं ........आप सोच रहें होगे ......मैं इस लिए

कह रहा हूँ की मुझे काम जो मिल गया ........नहीं ऎसी बात नहीं है ....आज जो कुछ भी सुभाष जी हैं

भाभी जी की सेवा भाव से है ,उनके द्वार से कोई खाली नहीं जाता .......और एक राज की बात बताता हूँ

सुभाष जी .....भाभी जी को बहुत मानते हैं उनको भी मालूम है ....उनकी सक्सेस में भाभी जी कहीं

खडी हैं .......मैंने चाय पी और खुशी -खुशी अपने घर आ गया ।

फिल्म कर्मा थी .......जिसमे मैं ज्वाइन हुआ ...पहले से सुभाष जी क़ा मुख्य सहायक

प्राभात खन्ना जी थे ......मुझे क्या काम दिया जाएगा .......यह मेरी समझ में नहीं आ रहा था ....मैं

वगैर जाने सुने मैं काम करने लगा ......मेरा दोस्त अशोक मुझे देख कर सकते में आ गया ....शायद

उसको मेरा ज्वाइन करना अच्छा नहीं लगा ......?

और सुभाष जी सहायक दोस्त हो गये ,अनिल ,श्याम गुप्ता ,उनके सहायक थे

करीब महीना बीत चुका था .....सभी को तनख्वाह मिल चुकी थी मैं ही रह गया .....एक दिन

सुभाष जी एडिटिंग कर रहे थे कर्मा फिल्म की ........लंच के समय ....सुभाष जी मुझ से बात

कर रहे थे ....और खुद ही पूछ लिया ......सैलरी मिल गयी ? मैंने कहा अभी नहीं ....

क्यों ....?

......जी मुझे नहीं मालूम .....

....परी से मेरी बात कराओ .....(परी ,यानी परवेज साहब ,सुभाष जी के छोटे साले हैं ,)

सुभाष जी ने परी से बात की ....फिर मुझसे पूछने लगे ,तुम्हे गुलज़ार साहब के यहाँ कितनी

सैलरी मिलती थी ? मैंने कहा सात सौ .......यह सुन कर कहने लगे तुम्हारे तो तीन बच्चे हैं

इतनी तनख्वाह में कैसे घर चलाते हो ?......मैं चुप रहा .......फिर पूछने लगे ,कितनी सैलरी

दे दूँ .........मैं चुप ही रहा .......

कुछ सोच के .....उन्होंने फोन पे फिर से बात की ......और कहा मिसरा जी को तीन हजार क़ा चेक

बना दो ....यह सुन कर मेरी ख़ुशी क़ा ठिकाना नहीं रहा ......

...नसीर साहब कर्मा थे .....मुझे देख कर ,कहने लगे गुलज़ार साहब को छोड़ दिया ...?.फिर लिबास

फिल्म के बारे में बात करने लगे ........विकास कब तक रिलीज कर रहा फिल्म को ?

इसका भी मेरे पास जवाब नहीं था ......

कर्मा में दलीप साहब मिला उनको करीब से देखा .....अनिल कपूर से मिला जग्गू दादा से दोस्ती भी

हो गयी ....मुझे पंडीत जी कह के बुलाता .....कर्मा तब जोइन किया जब फिल्म करीब -करीब

पूरी हो चुकी थी ......तभी प्रभात खन्ना के भाई अशोक खन्ना ने एक फिल्म शुरू की ,जिसके निर्देशक

प्रभात को लिया ....और फिल्म में सुभाष जी क़ा भी फाइनेस था .....मैं प्रभात का मुख्य सहायक हो गया

फिल्म क़ा नाम था ......पूरब और पश्चिम ......कलाकार थे माधुरी जी ,जैकी ,रजनी कान्त ....

पहला सेट फिल्मिस्तान में था

1 टिप्पणी:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आगे क्या हुआ..आप बहुत छोटे टुकड़ों में बताते हैं मज़ा नहीं आता...इतनी छोटे छोटे किस्से के कब शुरू करो कब खतम हो जाते है पता ही नहीं चलता...

नीरज