सोमवार, दिसंबर 27, 2010

९१ कोजी होम

उत्तर दक्छिन के सेट पहला गीत फिल्माया जा रहा था ,यहीं पर पहली बार मैं रजनी कान्त

से मिला । मैं मुख्य सहायक था ....कलाकार अक्सर मुख्य सहायक के करीब होने की कोशिश

करते हैं .......यही एक कड़ी होती है ,जो अन्दर की सारी बात जानता है....रजनी कान्त जी

सी -रॉक होटल में टहरते थे...जो बैंड स्टैंड पे था ......मुझसे हिन्दी और उर्दू के सवांद को सही

कराने की कोशिश करते थे .....मुझे ड्रिंक्स के लिए होटल में आने की दावत देते थे ......मैं हमेशा

इन्कार कर दिया करता था .......

उस वक्त रजनी कान्त आज जितने नामचीन हैं उस समय नहीं थे ......मुझे लगता

है यही वजह होगी जो मैंने उनसे सिर्फ एक पहचान तक ही रखा ........इस फिल्म के दौरान मुझे एक

राजस्थानी फिल्म बनाने का मौक़ा मिला ......और फिल्म को २५ दिनों में पूरा करना था .......कुकू

को मैंने बता दिया इस तरह की फिल्म मिल रही है .......उसने कह दिया जा बना कर आ जा .....

प्रभात खन्ना को हम लोग कुक्कू कह के बुलाते थे ......... ।


राजस्थानी फिल्म क़ा नाम था थ्हरी-म्हारी .........इस फिल्म को मैंने

तीस दिनों पूरा कर दिया .......तभी मुझे एक सीरियल मिलगया ......जिसका नाम था

किस्सा शांती क़ा ......सन ८७ का दौर था सिर्फ तेरह एपीसोड मिला था बनाने को .......और इन

तेरह एपीसोड को बनाने में कुल दो साल लग गया .......दूरदर्शन पे टेलीकास्ट भी हुआ ......अब मैं

निर्देशक बन चुका था सहायक बोर्ड हट चुका था ......तभी एक फिल्म निर्देशन के लिए मिल गयी

फिल्म कानाम था "ए मेरी बेखुदी "........जापान में पुरी फिल्म बनानी थी ........दो महीने रह के

यह फिल्म पूरी की ........

इस फिल्म के बाद मैं बिल्कुल खाली हो गया .......कोई काम नहीं था .....काम की

तलाश में इधर -उधर भटकना शुरू हो गया .....एक दिन जुहू से गुजर रहा था ......तभी मेरी

मुलाक़ात शलीम आरिफ साहब से मुलाक़ात हुई ......एक दुसरे क़ा हाल -चाल पूछा ......मैंने

अपनी बेकारी की बात की ..........कहने लगे .....

....अरे राज साहब के आफिस में सहारा कम्पनी ने भी अपना आफिस खोल लिया टी .वी .प्रोग्राम

बनाने के लिए .......तुम तो राज बब्बर जी को अच्छी तरह से जानते हो .......

यही दिन था .....मेरी जिन्दगी क़ा बदलाव क़ा दिन ........


1 टिप्पणी:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत दिनों बाद किस्से लेकर आये हैं हुज़ूर...खैर देर आये दुरुस्त आये...मज़ा आया आपको लौटा देख कर...हम तो फ़िल्मी किस्सों के दीवाने हैं...आप लिखते रहिये हम पढते रहेंगे...
आगे क्या हुआ?

नीरज