बुधवार, दिसंबर 29, 2010

९१ कोजी होम

.....राज बब्बर जी आफिस में पहुंचा ......राज जी के छोटे भाई कुक्कू से मुलाक़ात हुई

मेरी बहुत इज्जत करता था ,मुझे यूँ आया देख कर बोल पड़ा .....आइये गुलजार साहब

यह उसका मजाक करने क़ा तरीका था ....वजह थी ......मैंने गुलज़ार साहब को छोड़ के

किसी और के साथ काम नहीं किया ....मेरी पहचान गुलज़ार साहब के सहायक के रूप में

होती थी ........और मैं भी अपना परिचय गुलज़ार साहब सहायक के वतौर दिया करता था

.....................मैंने कुक्कू से कहा ......सूना तुम्हारे यहाँ नौकरी बँट रही है ......एक पान क़ा

बीड़ा मुहं में दबाते हुए बोला .......तुझे नौकरी की क्या जरूरत है ......तू तो बड़ी बड़ी फ़िल्में

डायरेक्ट कर रहा है ......मैं चुप रहा ....यह सुन के .......फिर उसने पूछा ...क्या बात है ?

क्या सच में नौकरी चाहिए ?.........

मैंने कहा .......क्या है ,बिलकुल खाली हूँ अभी .....कोई काम नजर नहीं आ रहा है ......बच्चों वाला

इंसान हूँ ..... ।

........पान चबाते हुए कहा ठीक है .....अंदर कमरे में दाढी वाला आदमी बैठा है उससे जा के

मिल ले .....मेरा बता दियो .....मैंने भेजा है ....मैं कमरे में पहुंचा ....सुमित रॉय साहब बैठे थे

मैंने उन्हें अपने बारे में बताया .......मुझे सुनने के बाद कहने लगे .....आप राज जी से एक बार

मिल ले .......मैं कमरे से बाहर निकला .....

कुक्कू जो अभी तक बाहर ही खड़ा था ....मुझे इतनी जल्दी बाहर आता हुआ देख कर ......

कहने लगा ....क्या हुआ जमा नहीं .....

.....मैंने कहा ,यार वो तो राज जी से मिलने के लिए कह रहे हैं ......

......फिर क्या कोठी पे चला जा भाई साहब वहीं पे हैं.......दो महीने से बेकार था ....अंधे को एक

लाठी क़ा सहारा मिल गया .....

राज जी से मिला .....बँगला बनवा रहे थे ....गुलमोहर रोड पे .....मुझे देखते ही हंस के मिले

और मैंने उन्हें नौकरी की बात की ........कहने लगे कल से आ जाओ ........खुशीखुशी घर की


..तरफ चल दिया .......

आज जब मैं मुड़ के देखता हूँ ,जीवन बहुत रंगीन लगता है ......जिनसे आप को बहुत उम्मीद

होती वह बिलकुल हेल्प नहीं करते ......बस राह चलते लोग मिल जाते हैं जो आप की उंगली पकड

के ले जाते है और सही राह पे बैठा देते हैं ......कौन उनको भेजता है .....अब जा कर मालुम हुआ

उस विधाता क़ा हाथ होता है ......हम कुछ नहीं करते है .....करने वाला है यह ज्ञान उस समय

नहीं होता है .....यह भी उसी की कलाकारी होती है

यहाँ नौकरी करते हुए मुझे एक फिल्म मिली .......जिसको डायरेक्ट तो मुझे ही करनी थी लेकिन

नाम किसी और क़ा आयेगा ......सन ९४ चल रहा था ,सहारा में काम करते हुए करीब चार साल हो

चुके थे .......सहारा ने ......हम सभी लोगों से इस्तीफा देने को कहा ......और यह समझाया गया

जब हम चैनेल खोले गें तब आप सब लोगों को बुला लें गें .......

....नौकरी के दौरान यह महसूस किया .....जो मजा उड़ने में है वह मजा बंधने में नहीं है ...

फिल्म जहां तुम ले चलो .......शुरू हो गयी .......विशाल भारद्वाज क़ा मुय्जिक था गुलज़ार साहब

के गाने थे ........फिल्म को बनते हुए करीब एक साल लगा ......पैसे भी अच्छे मिल रहे थे ,और साथ में

निर्माता का एक वादा भी था .......एक फिल्म तुम्हारे साथ भी करेंगें ........

.....रेखा भारद्वाज ने एक गाना गाया ......और वह भी इस तरह ......विशाल ने डव तो रेखा से

करा दिया था ...बाद में लता जी से गवा लेंगे .....हुआ नहीं वैसा .......और वह गीत रेखा जी आवाज

में ही रहा .........

इसी दौर मैंने रमन जी की कम्पनी में भी काम किया ....दो सीरियल भी बनाया जो दूरदर्शन पे चले

एक नाम था शीला और दुसरे क़ा नाम था "वाह मजा आ गया "...सन ९८ आते -आते मैं फिर से

खाली हो गया .......कोई काम नहीं था ,इसी बीच सहारा ने अपना चयनेल खोलने काम शुरू कर

दिया मैं भी सुमित जी से मिला ....कहने लगे .....आप हमारे लिए कोई प्रोग्राम बनाये .....गुलज़ार

साहब को निर्देशक वतौर .......पैसा चैनेल लगाएगा ......मुझे यह प्रोपोजल बहुत सुन्दर लगा

....मैं गुलज़ार साहब से मिला ,वह भी तैयार हो गये .....पर उनका कहना था .....उनकी फिल्म

हु तू तू शुरू होने वाली थी .......कहने लगे यह फिल्म पुरी हो जायेगी ....फिर तुम्हारा काम करूंगा

.......मुझे फिर से उनका सहायक बना .......फिल्म के दौरान कई बार कहा उनसे एक कहानी

लिख के दें जो मैं सहारा चैनेल में दे सकूं ......पर वह आज कल होता रहा ...फिल्म पूरी हो चुकी थी

मुझे एक डर सताने लगा.....एक राह चुननी थी ...या तो इन्तजार करो ,,,,जब गुलज़ार साहब

कहानी दें ........इसी उधेड़ -बुन में महीना गुजर गया ......एक दिन उनका मूड देख के कहा .....भाई

वो एक कहानी दे देते .....तो मैं चैनेल को दे देता ....."कहने लगे बोस्की के लिए एक स्किप्ट

लिखनी है .....और शलीम के लिए लिखना है " मैं जान गया ....समझदारी इसी में है ....चैनेल को

ज्वाइन कर लो ......तनख्वाह भी अच्छी थी ........और दुसरे दिन सहारा पहुंचा और सुमित रॉय

को सच्चाई से अवगत करा दिया .......

..................एक फिर से मैं नौकरी पे लग गया ......चार ही महीने हुए थे ......अनिल मेहता जी

ने वादा याद दिलाया ....मैंने एक फिल्म क़ा वादा किया था

................कहानी पे काम शुरू कर दिया .....मैंने सोच लिया था अब मैं नौकरी नहीं छोडूंगा

फिल्म की शूटिंग छुट्टी ले कर पुरी करूंगा ........फिल्म क़ा नाम था "बेलगाम "फिल्म पुरी भी की

फिल्म में बहुत नाम चीन एक्टर नहीं थे ......बस लगी और उतर गयी ......मेरी नौकरी चलती ही रही

दो साल बाद मेरे दुसरे निर्माता जय सिंह आ गये ......मुझे डेली सोप बनाने की बात करने लगे

...........................कहानी पे एक साल काम हुआ ......आखिर एक कहानी फाईनल हुई और

पायलट शूट किया गया ....दूरदर्शन पे पास होते होते भी वक्त लग गया ......नाम रखा गया

देहलीज एक मर्यादा .......यह डेली सोप था .....इस सोप में काम करने के लिए आज की मशहूर

अभिनेत्री विद्दा बालन भी आयीं थी .....लेकिन तब तक सेंटर कैरेक्टर के लिए एक लड़की को

फाईनल किया जा चूका था .......जिस चैनेल में आज तक काम कर रहा हूँ सहारा श्री के छोटे

साहबजादे की पत्नी ने भी मेरे इस सीरियल में काम किया था .......एक बार मुझे से मुलाक़ात हुई

तब उन्होंने छोटे भैया से मुलाक़ात कराया था

आज मुझे इस चैनेल में काम करते हुए दस वर्ष हो चुके थे ।

बेटी की शादी की २००७ सहारा से ही पैसे मिले थे ......मेरा पी यफ जो मिला उससे सारा काम हुआ

किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया ........

..................मेरे जीवन में सहारा चैनेल माँ -बाप की तरह रहा ......हर मेरे दुःख दर्द मेरे साथ रहा


2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारो...वो ही संकट में किसी को ऊँगली थामने भेज देता है...संघर्ष हर लाइन में है...मात्र का थोडा बहुत फर्क हो सकता है बस...वैसे जीवन भी तो संघर्ष ही है...
रोचक पोस्ट...
और कोई नया किस्सा सुनाइए ना.

नीरज

अजय कुमार ने कहा…

अपने पुराने दिनों को न भूलना अच्छी बात है