शुक्रवार, जनवरी 14, 2011

९१ कोजी होम

आज का पाली हिल .......बिलकुल अलग है, सत्तर में कुछ ऐसा था ....बड़े -बड़े कटहल के

पेड़ ....जिनमे लगा कटहल ..........कोजी होम से लेकर ...दलीप साहब के बंगले तक

ऐसा सुन्दर रास्ता .....पेड़ों की छावं में चलना .....और साथ में कोई है ?तो और भी

रंगीन हो जाता यह सफ़र .......अक्सर हम दलीप साहब के बंगले के सामने रुक जाते

और ध्यान से देखते उसे ......इसी बंगले में वह इंसान रहते हैं जो इस सदी क़ा महान नायक

है ......दलीप साहब को देख कर आज भी मन इतना खुश हो जाता है जैसे किसी अपने प्रिय

को देख लिया है ।

मीरा फिल्म की शूटिंग चल रही थी महबूब स्टूडियो में ,मेराज साहब अब निर्देशक

बन चुके थे लेकिन अक्सर मीरा की शूटिंग में आ जाए करते थे ......और गुलज़ार साहब की हेल्प

कर दिया करते थे .....और गुलज़ार साहब को भी उनका आना अच्छा लगता था ।

जिस बिल्डिंग में मैं रहता था ,उसी में मेराज साहब भी रहते थे । शाम जब शूटिंग पैकअप

हुआ तो हम दोनों लोग साथ -साथ घर जाने लगे ......तभी उनको ख्याल आया उनको अपनी फिल्म

पलकों की छावं की भी डेट काका जी से लेनी थी (राजेश खन्ना को काका कह के बुलाते थे )

काका क़ा बँगला ओट्स कल्ब के पास था .....हम दोनों लोग काका जी के बंगले के पास पहुँच गये

मेराज साहब ने कहा मुझसे तुम यहीं कार में बैठो मैं मिल के आता हूँ ........मैंने उनसे कहा ...

मेराज साहब आप को देर लगे गी मुझे जाने दीजिये ......मैं घर जाता हूँ ......

इतनी बात कर के ,मैं चल दिया और पैदल ही ,बस पकड़ने के लिए में रोड से .......एक सिगरेट ली बिल्स

और पीता हुआ चल दिया .......पाली नाका के पास ही अभी पहुंचा ही था ,तभी मेराज साहब कार ले कर

आ पहुंचे और कहने लगे हमारे साथ चलो ......मैंने पूछा .....काका से मीटिंग हो गयी .....घबराये

हुए कहने लगे काका जी बहुत नराज हैं .......पर हुआ क्या ? यार तुम्हारे जाने बाद मैं जब बंगले में

पहुंचा तो मैंने आदतन कह दिया मीरा की शूटिंग से आ रहा हूँ .......फिर उन्होंने गुलज़ार साहब क़ा

हाल पूछा ......फिर कहा साथ में आये थे क्या ? मैंने कहा नहीं ...साथ में उनके सहायक मिश्राजी थे

....................इतना सुनना था ....कहने लगे मिश्रा जी को क्यों ले कर नहीं आये ....जाइए उनको ले

कर आइये ........इसके बाद मैं कुछ बोल नहीं सका .....और भागता हुआ खोजता हुआ आया

अच्छा हुआ तुम मिल गये वरना .....डेट -वेट थोड़े मिलेगी ......

मैं कार में बैठा और चल दिया उनके साथ .......मेराज के चेहरे पे एक डर चिपका हुआ था

काका का बँगला आ गया ....कार बाहर खडी की और हम दोनों बंगले में छोटे गेट से अन्दर घुसे

और काका जी वहीं खड़े हुए ही मिल गये ........उनका पहला संवाद था ....भई हमारा गेट जरुर

छोटा है पर दिल छोटा नहीं है हम लोगो को वह हाल में ले कर गये .....थोड़ी देर बाद शराब आ गयी

मेराज साहब से बाते करते रहे ....मैं उनकी बाते सुनता रहा (यह वह दौर था जब काका जी हर एक

फिल्म फ्लाप हो रही थी लोग इनसे किनारा कर रहे थे .......

बात -चीत का दौर चलता रहा रात का दो बज चुका था ....खुद ही उन्होंने कहा

चलो खाना खाते हैं ........और अपनी पत्नी डिम्पल को बुलाया और खाना लगाने को कहा .....

पत्नी मेरी घर पे इन्तजार कर रही होगी उसने एक आदत बना ली थी ...रात हम दोनों साथ ही खाना

खाते थे ....घर में मेरे फोन भी नहीं था जिससे मैं उसे इन्फार्म कर सकता .....उस समय काका

ऐसे बादशाह थे जिनके सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं होतो थी

खाना खाते -खाते तीन बज चुका था ............डिम्पल जी ही खाना खिला

रहीं थी .......मैं और मेराज साहब खाना खाने के बाद इज्जात ली और बंगले के बाहर आये

उस वक्त ऐसा महसूस हो रहा था जैसे जेल से चार महीने की कैद काट के बाहर निकले हों ......

दूर तक फैला हुआ समुन्द्र देखते हुए ,मैंने कहा मेराज साहब ....इस कैद में रहना बहुत

मुश्किल है ,यहाँ तो सिर्फ वही ही बोलते हैं दुसरा नहीं ..............चलिए घर ................... ।

घर पहुंचा ,पत्नी अभी तक जाग ही रही थी ....मेरा इन्तजार था .....

कहने लगी बहुत देर तक आज शूटिंग चल रही थी .......मैंने सब सच बता दिया ...........

हम दोनों ने बैठ के खाना खाया ....और अपने आप से वादा किया अब दुबारा नहीं होगा ऐसा कुछ

..................आज भी वह घटना ...इस तरह मेरे जेहन पर छाई है ....और सभी सिरों को जब भी

जोड़ता हूँ तो यह सच लगता ....काका क़ा फ्लाप होना .....

1 टिप्पणी:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आपकी कथा कितने रंग समेटे रहती है...वाह...काका जैसे बडबोले इंसान को फ्लॉप होना ही चाहिए...ऐसे बडबोले इंसान एक दिन औंधे मुंह गिरते हैं और कोई उन्हें पूछने वाला भी नहीं मिलता...
नीरज