एक दिन हम सभी सहायक ,गुलज़ार साहब के आफिस में बैठे थे ....जब शूटिंग
नहीं होती ,तब दिन बहुत सुस्ती नुमा गुजरता है ........काम ना हो तो वगैर बात
के भूख बहुत लगती है ,भाई (गुलज़ार साहब )कुछ खाते नहीं थे .... । हम लोग
भी कुछ नहीं खा पाते थे ......और दूसरी बात तब पैसे भी इतने नहीं होते थे ...
की बाहर जा के कुछ खा ले ........उम्र भी ऎसी थी भूख की दादा गिरी सब से ज्यादा थी
...............गुलज़ार साहब ने बेल बजाई ........राम (चपरासी )उनके कमरे में गया
बहार आ कर मुझसे कहा .......आप को साहब बुला रहें है .......मैं उनके कमरे में गया
.....मुझसे उन्होंने घर से कुछ लाने को कहा ...............इस समय मुझे वह चीज याद
नहीं है ......कहने लगे राखी से कहना मेरे बेड रूम में लगी आलमारी में .......बाई तरफ
एक लिफ़ाफ़े में रखा है .......मैं गौतम की तरफ चलने लगा तभी .............
मेरे साथी पूछने लगे ......नीचे तक जा रहे हो .?..कुछ खाने के लिए लेते आना
सभी ने दो -दो रूपये दिए ......दो रुपया सन ७४ में ठीक -ठाक था . चारो सहायको के कुल
मिला कर दस रुपया हो गये .....भजिया और छे पाव लेकर आने की बात तै हुई ...आफिस से
बाहर आया ......पहले मैं पाली नाका गया ईरानी की दूकान से भजिया और पाव लिया .......
गौतम एपार्टमेंट पहुंचा जहाँ गुलज़ार साहब रहते थे ......लिफ्ट से खोली ऊपर जाने
के लिए तभी जीतेन्द्र जी के भाई प्रशन कपूर मिल गये ......उनसे बात चीत करते हम दोनों
जाने लगे .......तभी उन्होंने पूछा मुझसे ......क्या हाल चल गुलज़ार साहब क़ा ?मैं उनके इस सवाल
पे कुछ शक के मूड में आ गया... ॥
राखी जी उस समय ....गुलज़ार साहब के साथ गौतम एपार्टमेंट में
रहती थी ........मैं घर पे पहुंचा राखी जी मिली (हम सभी सहायक उन्हें दीदी कहते थे )
मुझे देख कर उन्होंने ही खुद पूछा ........साहब ने कुछ मंगवाया है ....मैंने उन्हें बताया ........
राखी जी के साथ बेड रूम में गया ......हाथ क़ा भजिया क़ा पैकेट वहीं पास के टेबल पे रखा
..............बेड रूम में आलमारी से एक किताब निकाली ......जो लिफ़ाफ़े में रखी थी .......
भजिया देख दीदी बोल पड़ी यह सब तुम लोग दोपहर में खाते हो .......मैं
कुछ नहीं बोला .......कहने लगी ..........इधर दिखाओ
मैंने वह कागज में बंधा भजिया दे दिया .......उन्होंने खोल कर देखा ...........
यह सब खाते हो ....गुस्से में कहा
मैं चुप क्या कहता ............
उन्होंने वह भजिया डस्ट बिन में दाल दिया .......और गुस्से में कहा इधर बैठो ......
थोड़ी देर एक टिफिन में खाना दिया .......और कहा ......साहब को भी खिला देना
मैं टिफिन ले कर आफिस आ गया .......और अपने सब दोस्तों को पूरा हादसा बतलाया
.................अब सवाल यह उठा कौन गुलज़ार साहब को कहे ......घर से खाना आया ...खा ले
राम को कहा तुम जा कर साहब को बुला लाओ .......उसने भी मना कर दिया ......यह कह के
साहब दोपहर को खाते ही नहीं .......राम वह चपरासी था जो विमल रॉय के पास भी स्पाट में काम
करता था ,,,,और साहब को बहुत करीब से जानता था ...........और गुलज़ार साहब की उन बातों
को भी बताता जो हमें मालूम नहीं थी
मैं ही गुलज़ार साहब के पास गया .......और कहा दीदी जी ने आप के लिए भेजा
खाने के लिए ................उनका जवाब बड़ा अजीब सा था ...सब नाटक है ...............मैं कुछ
नहीं बोला और बाहर आ गया .......राम ने कहा .मैं कहता था ना वह नहीं खायेंगे .............
..........मुझे भी पता नहीं क्यों ......खाना अच्छा नहीं लगा .............आज भी उस खाने
स्वाद नहीं भूला मैं ..............आज भी याद कर के उस रस को महसूस कर लेता हूँ ......जो एक
जहर की तरह उनके रिश्ते में बढ़ता ही रहा .................और तलाक तक आ पहुंचा... ।
2 टिप्पणियां:
बेस्वाद रिश्ते का खाना भी बेस्वाद होगा
रिश्तों में मिठास न हो तो कोई खाना अच्छा नहीं लगता...उनके रिश्तों को किसकी नज़र लगी? ये बताएं..
नीरज
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