वह सगी नहीं थी ...पर बेटी थी
मेरा दर्द समझती थी
अक्सर पापा कह के बुलाती थी
फोन पे ही उससे बात होती थी
रहती थी तो मेरे ही शहर में
एक बार मिली थी ......
उसमे उम्मीद जगा थी मैंने
यह कह दिया था मैंने उसे
वह मेरी बहु बने गी ........
मैं ही फेल हो गया ......
कुछ ना कर सका मैं उसके लिए
अब भी वह मुझे पापा बुलाती है
कहीं मैं उसका दोषी हूँ
एक उधार क़ा बेटा लिया
उसे उसकी फोटो दिखलाया .....
और धन क़ा लालच दिया .......
वह तैयार हो गया शादी के लिए
बेटी को सब कुछ बतलाया ......उसने फोटो देखते ही
कुछ सोच के हाँ कह दिया
उसे मेरा दर्द मालूम था
पिता का सबसे बड़ी चिंता होती ...बेटी क़ा ब्याह
शादी हो गयी उसकी ....मैंने अपना सब कमाया
उसके नाम कर दिया
एक रात मेरे बच्चों ने मेरा क़त्ल कर दिया .....
सब दुःख दर्द से निजात पा लिया मैंने
1 टिप्पणी:
उफ़ ………………बेहद मार्मिक चित्रण किया है सच्चाई का।
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