सब कुछ इस तरह से याद है जैसे कल की ही बात हो ,पहली
बार सही ढंग से जब मेरा नाम लिखवाया गया था उस स्कूल
क़ा नाम था कान्यकुब्ज वोकेशनल अब उसका नाम बप्पा स्कूल
रख दिया गया है .
मेरा नाम दूसरी क्लाश में लिखा दिया गया .................अभी दो चार
ही दिन हुए थे स्कूल गये .....मुझे अपनी क्लाश टीचर बिलकुल माँ जैसी
लगती थी मैं क्लाश पीछे की सीट पे बैठा हुआ था ...तभी मेरी माँ क्लाश
में आ पहुंची ............
.........मेरी माँ गाँव से कब आयीं ...नहीं पता चला ,मेरी टीचर से मिली
चलते -चलते उन्होंने मुझे एक अमरुद दिया खाने को ........एक बार मेरे
पिता आये नाम लिखवाने .....और एक बार माँ मुझसे मिलने आयीं .......
उसके बाद से मैंने इतनी पढाई की पर घर क़ा कोई भी मुझसे मिलनी नहीं
आया ...............आज सोचता हूँ पहले के माता पिता कुछ इस तरह के होते थे
..................आज तो माँ बेटी बेटे क़ा होम वर्क भी करती है और पिता रोज
बेटे -बेटी को स्कूल छोड़ने जाता है .......................
यह बातें मैं सन पचास की कर रहा हूँ .............
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