बचपने में .......हम बच्चे बहुत बदमासी करते थे ,मैं ,गुड्डू ,काले ,चंदर ,
हमारी एक बदमाश चौकड़ी थी .....यह सारे मेरे दोस्त पाकिस्तान से बटवारे
के बाद हिदुस्तान आये थे .................हमारे घर , बैरक नुमा थे ...जो एक दुसरे के
सामने थे ....घर के बाहर मंजी डाल सभी सोते थे रात हम सभी बच्चे सडक पे मिलते थे
.......वहीं बैठ के हम लोग स्टेशन पे घूमने जाते थे....तब गाड़ियां भी कम चलती थी
स्टेशन पे एक सन्नाटा सा फैला होता था .
हम लडके घूमते हुए एक नंबर प्लेटफार्म से माल गोदाम की तरफ जाते थे
वहां फलों से लदी पेटियां होती थी ..............हम किसी एक पेटी को खोलते थे
और फलों को निकाल के प्लेटफार्म एक के सुरंग में चले जाते थे और वहीं बैठ
के खाते थे मुझे याद है एक बार नासपती खाते -खाते मेरे आगे के दूध के दांत
टूट गये थे ...
यह बदमाशिया सोच के बहुत दुःख होता है .................
आज भी जब लखनऊ जाता हूँ .....अब ट्रेन से आना जाना तो नहीं होता है .......
लेकिन बचपने को याद करने के लिए ....माल गोदाम तक जरुर जाता हूँ
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