जब मैं अपनी पत्नी के साथ आलमबाग के चौराहे (लखनऊ )पे घूम के मिठाई
खरीद रहा था .....तभी बचपन के दोस्त गुडू की याद आ गयी ........
नाम था उसका कमलदेव अबरोल पिता क़ा नाम था सेवादास जी ......इसी
आलमबाग के चौराहे पे कहीं उनकी दूकान थी ...मिठाई वाले से पूछा ....यहाँ
अबरोल स्टोर है क्या कोई ?मैं यह सब आज पूछ रहा था १५.१०.२०११ में और बात
जो मैं कर रहा हूँ वह सन ६५ की है ..........करीब ४५ साल पहले की ................
.............मुझे लगा मैं ख्वामखाह यह सब जानने की कोशिश कर रहा हूँ दूकान दार ने
कहा आगे मोड़ पे उनकी दूकान है .......मेरी पत्नी भी मुझे बड़े अजीब ढंग से देखने लगी
........कुछ कहती दूकान दार को पैसा दिया ....और हम लोग उस मोड़ की तरफ मुड गये
वैसे मैं सन सत्तर से मुम्बई में रहता हूँ .......लखनऊ आना -जाना तो होता ही है
पर किसी ऐसे दोस्त को खोजना जो पहली क्लास से साथ पढ़ा हो .....सन ५८ में उसके पिता ने
आलमबाग में घर बनवा लिया और सारा परिवार चारबाग से आलमबाग चला गया ............
धूप कुछ ज्यादा ही थी ...पत्नी ने ऐसे ही पूछ लिया किस्से मिलने जा रहे हैं ?....बस
दो मिनट ....वह सामने दूकान आगयी .......दूकान पे जा के खडा हो गया ....एक लड़का बैठा हुआ था
जो मालिक ही लग रहा था ....पर उसकी शक्ल गुडू से नहीं मिल रही थी ........क्या बात करूं
समझ में नहीं रहा था ,फिर भी पूछ ही लिया ....कमल ....देव यही दूकान है ....उस लडके ने मेरी
तरफ देखा ....और कहा ......मैं उनका छोटा भाई हूँ ....उनसे मुलाक़ात नहीं हो सकती ........कुछ
सोच के उसने जवाब दिया ......वह तो कहीं और रहते हैं ....अब तो रिटायर्ड हो चुके है दो लडके
हैं एक अमरीका में रहता है .....मैंने कहा मैं उनके बचपन क़ा दोस्त हूँ .....रामलखन.... बैरेक्स में
हम साथ रहते थे ....यह गुडू क़ा सब से छोटा भाई था ...........फिर खुद ही कुछ सोच के बोल पड़ा
बड़े भाई साहब विजय नहीं रहे ..............एक खमोशी .....बिजय ने मुझे बचपन में साइकिल चलाना
सिखाया था ......पहले कैंची चलाना सिखाया फिर गद्दी पे कैसे बैठें ............
तभी मुझे पापा जी की याद आ गयी सन ५७ में मेरा हाथ टूट गया था उन्होंने ने ही
ठीक किया था ....जब वह बैठाते थे मैं बहुत रोता था ......गुडू के पापा जी पहलवान किस्म के थे
पूरा मोहल्ला उनसे डरता था ......घर में उन्होंने एक औरत की बहुत बड़ी फोटो लगा रखी थी
आज याद करने पे लगता है वह फोटो फिल्म हिरोईन मधुबाला जी की थी ....पहली बार उनके
घर में रेडिओ सुना था .......पैसे सूद पे देते थे ......एक साईकिल खरीदते थे और साल भर चलाते थे
फिर एक रूपये की लाटरी निकाल के किसी एक को एक रूपये में दे देते थे ................
............................पापा जी आज भी ज़िंदा हैं ९० साल के हो गये हैं आज भी सेवा भाव से हाथ पैर
पैर बिठाते है ................यह सब बाते खड़े -खड़े हो रहीं थी ......पत्नी शायद बोर हो गयी थी
फिर वहां से चल दिया .......और यह कहा... गुडू से कहना रामलखन आया था ...............पता नहीं
उस तक मेरी बात पहुंचती है या नहीं ..........
1 टिप्पणी:
पुराने लोगों से मिलने का प्रयास जारी रखिये
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