सोमवार, अक्तूबर 31, 2011

yaaden

मुझे ताश के पत्तों की समझ आज तक मुझे नहीं है
बहुत साल पहले की बात है ....मैं अपने दोस्त रतन के साथ
किसी से मिलने जा रहा था ......दीपावली के ही दिन थे
.............जब उस घर में घुसे तो क्या देखता हूँ सात आठ लोग
जमीन पे बैठे पत्ते खेल रहे थे मैं और मेरा दोस्त रतन भी बैठ गये
जीते हुए लोगो को देख कर मेरा जी भी ललचा गया ............
...............जेब से पैसे निकाल के खेलने लगा .....पहले ही हाथ में
मेरे जेब के सारे पैसे झड गये ............
बाजी भी कोई और जीत गया ...............यही मेरे जीवन क़ा पहला जुआ था
और आखरी भी .............

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