सोमवार, जनवरी 02, 2012

एक रात की नीद

साल की आखरी शाम थी ,मैं जिस बिल्डिंग में रहता था ..नीचे दुकाने थी
सभी बंद हो चुकी थी . मैं कम्पाउंड में टहल रहा था तभी मुझे एक दूकान की
सेड में कोई सो रहा था ......मैं चौकीदार को खोजने लगा ,कहीं वह नज़र नहीं आया
मैं उस लडके के पास पहुंचा ,एक कथरी उसने बिछा राखी थी और एक से अपने
को ढके हुए था .....ढंड के दिन हैं मुंबई जैसे शहर में इतनी ठण्ड तो नहीं होती लेकिन
रात को घर में एक चादर तो ओढ़नी ही पड़ती है बाहर की तो बात ही और ही है वहाँ
तो रजाई भी ओढना पड़ सकता है ,इसी लिए उस लडके ने मोटी कथरी ले रखी थी
ओढने के लिए .....वह सो चुका था
मैंने गुस्से में उसे जगाया .....ये लडके ,यहाँ क्यों सो रहा है ...चल उठ ,चल उठ उसे
मजबूर किया यहाँ से जान के लिए आँखे मलते हुए और मुझे देखता हुआ कम्पाउंड से
बाहर निकल गया ...एक चक्कर लगा के घर में आ गया ,पत्नी को पूरा किस्सा बताया
वह गुस्सा गयीं ......और कहने लगी
..............कभी -कभी आप बहुत बड़ी बेवकूफी करती हैं जाईये उसे देख के आये ,वह कहाँ
गया .......मैं कुछ सोच के नीचे चला गया और उस लडके को खोजने लगा .......
पूरी बिल्डिंग क़ा चक्कर लगाया .....वह नज़र नहीं आया .................मैं अपनी पत्नी से डरता
नहीं ..........फिर भी एक गुनाह सा लग रहा था जो मुझसे हो चुका था .............
मैं नीचे कम्पाउंड में बैठा रहा ....चौकीदार मेरे पास आया और मुझसे पूछने लगा क्या बात है
साहब ?आप नीचे बैठे हैं ?
तुमने कोई लडका देखा इधर सोने को आया था ?
कुछ सोचने के बाद कहा ......कौन साहब ?
तभी मेरा मोबाइल बजा ....वाइफ क़ा फोन था ,मुझे ऊपर बुला रहीं थी
मैं अपने फ़्लैट में पहुंचा .....छूटते पूछा मिला वह ?
मैंने झूठ बोल दिया ....हाँ मिल गया ....उसे बिल्डिंग के नीचे सुला आया .....
खाने क़ा पूछा .....भूखा हो तो ....
डर के नहीं में सर हिला दिया .............
इतना सुन के वह किचन में गयी और कुछ ले के आयी .....और कहने लगी ...चलो उसे खिला के आते हैं
................कुछ सोच के मैंने सच कह दिया वह मिला नहीं .....मै झूठ बोल रहा था ...
एक सन्नाटा हमारे बीच बिखर गया ...हम चुप थे ....पत्नी क़ा गुस्सा भरा हुआ चेहरा .....शांत होने लगा
बिना कुछ कहे .........यह सब देख के मैं खुद ही अपनी नज़रों में गिर गया ...पत्नी बिना कुछ बोले बेडरूम
में चली गयी ......मैं वहीं पास रखी कुर्सी पे बैठ गया .......
रात के बारह बजे ...नया साल लग गया पत्नी बेड रूम से नहीं निकली ......मैं सच डर के मारे नहीं नहीं गया
उसे विश करने .....बैठे -बैठे ....कभी अपने आप पे गुस्सा आता ,कभी उस लडके पे ,एक बार लगा सब बाते
पत्नी से नहीं बताना चाहिए ....इसी सोच में रात के करीब तीन बज गये ....आँख में नीद जोर मार रही थी
तभी पत्नी आयी और गुस्से में कहने लगी अभी तक सोये नहीं कल आफिस नहीं जाना ?
मैं पत्नी को एक टक देखता रहा ....जैसे रोमांस में देखते है ....
....वह कुछ कहती तभी दरवाजे के घंटी बजी हमें लगा बड़ा बेटा आ गया ....नया साल मना के .....मैंने दरवाजा
खोला ........सामने चौकीदार खड़ा था ......
मैंने पूछा क्या बात है ......?
साहब एक लड़का जिद्द कर के नीचे सोना चाहता है .......हम दोनों के चेहरे बदल गये ....
मैंने जल्दी से चौकीदार से कहा ....उसे ऊपर ले के आओ ......वह खडा रहा उसकी भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था
......फिर से मैंने उससे कहा ....लाओ उसे
वह जाने लगा ....तभी पत्नी बोली .....रुको बहादुर ......और वह फिर से किचन में गयी और वही खाना ले कर आयी
और चौकीदार को दे कर कहने लगी ........यह लो ...और उसे खिला देना .......
बहादुर बेवकूफ की तरह हमें देखता रहा ......और फिर खाना लेकर चला गया
हमारे चेहरों पे एक चमक थी .....पत्नी ने मुझे २०१२ नये साल की मुबारक बाद दी ....
.....एक पाप से मुक्ती मिली

1 टिप्पणी:

vandana gupta ने कहा…

"एक रात की नीद"बहुत कुछ कह गयी।