शनिवार, अप्रैल 28, 2012

dablu mama

आज घर में बैठा कुछ लिखने का सोच रहा था ,फिर बहुत सोचने के बाद यह महसूस हुआ ,
क्यों नहीं डब्लू के बारे में लिखूं ..................?देखने में बहुत खुबसूरत उम्र कोई तीस साल की,,,,,,,,
किसान है घर की  खेती देखता ......कैसे भी कर के उसने एक ट्रेक्टर भी खरीद लिया ........किसान के पास खेत जोतने का हथियार हो तो वह राजा हो जाता है ...............

                              इस बार की खेती उसकी ऐय्सी रंग दार थी की हर गाँव वालों की नज़र में बैठ
गया .......सभी, उसके वैगर बात के दुश्मन हो गये थे .......क्यों इतनी अच्छी पैदावार की इस लड़के ने ...............?मैं उसी दौरान गाँव गया .......उसने मुझे खेत दिखलाया और उसकी मेड पे खुशी के मारे लेट गया .......जैसे अपने खेतों को लहलहाते देख के नशे में आ जाता ......................

                        सही में उसको नज़र ही लग गयी थी ,लखनऊ से अपने गाँव हज्पुरा जा रहा था ,,,
बस जब बाराबंकी पहुंची .......बस डीजल लेने के लिए रुकी ...........इसने भी सोचा ....कुछ खा लिया जाय ......सड़क पार कर के .....दूसरी तरफ गया एक चाट की दूकान थी .......
                            बस वाला डीजल भरा के चल दिया .......बस कुछ ही दूर ही चली होगी तभी एक लड़का चिल्लाया अरे हमार मामा नही आये .........
अरे भैय्या बसा रोका ..........डब्लू मामा नहीं आये .......बस का कंडक्टर डब्लू को जानता था ....उसने समझा कुछ गड़बड़ जरुर ही है ...............बस मुड़ी और जब पीछे कुछ दूर ही चली थी ,तभी एक जगह भीड़ लगी हुई थी ......बस कंडक्टर के मन में डर बैठ गया ........

                       सडक पे लहुलुहान डब्लू पडा था ........किसी ने बताया एक कार मार के चली गयी सीना इतना कट गया था जैसे दिल अभी बाहर निकल आयेगा ...........बस वाले ने वहीँ के अस्पताल में ले गया .....डाक्टर ने रिफर कर दिया लखनऊ के लिए .....वह भांजा अपने मामा को लेकर कहाँ जाए और कैसे जाए ?  

                         आखिर बस कंडक्टर ने एक वैन कर दी और उससे लेकर ..................लखनऊ पहुंचे .......डाक्टर ने सीधा जवाब दे दिया ....बचना मुश्किल है .........डब्लू कोमा में चला गया था
और तीन महीने तक कोमा में रहा ........और फिर एक रात उसकी आँख खुली .......चिल्ला -चिल्ला के कहने लगा ......मैं ज़िंदा हूँ ...अम्मा मैं ज़िंदा हूँ माँ जो वहीं जमीन पे सोती थी उसकी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा .......

                       आज दो साल बाद , वही माँ कहती है ..................तभी ही मर गया होता तो अच्छा होता ....................ऐसा क्या हो गया ................डब्लू का इश्क जाग उठा था ......उसी गाँव की राजभर की लडकी संगीता से ..........

                                 मैंने भी बहुत समझाया .............एक ही गाँव में यह सब नहीं होता है ,तुम एक पंडित के लड़के हो और वह ......पर वह मेरी बात नहीं समझ रहा था .........

                        मैं शहर आ गया था .........एक दिन वह खबर आयी जिसका मुझे य़कीन ही नहीं था
माँ  ने अपने ही लाल को संखिया खिला दिया था      ..................

आज मैं गाँव जा रहा हूँ ........बुआ का बेल लेने ...................

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