गुड़िया ........
आज फिर ,उसकी याद आ रही है ,जब भी राखी का त्यौहार आता है ,परबस
ही उसकी याद आ जाती है ,कोई डेढ़ साल की उम्र थी उसकी .............और मैं ,
करीब सात साल का .......मैं दिन भर उसको खिलाता रहता था ,माँ हमारी मर गयी थी
........लोग कहते थे ,जन्मते माँ को खा गयी ...........हम दोनों के देखभाल के लिए ,मेरे बाप ने
दूसरी शादी कर ली थी .....मैं एक माँ की तरह गुड़िया क़ा ख्याल रखता था ......मेरी सौतेली माँ
गुड़िया की टट्टी -पेशाब भी मुझ से साफ़ करवाती थी .........सौतेली माँ के रंग में, बापू इतना रंग
गये की हमारा बिलकुल भी ख्याल नहीं रखते थे .......और मार पीट भी इतनी होती थी की ............
काम नहीं किया तो खाना नहीं मिलता था .......बाप से शिकायत भी , हमेशा यही सोचता ,जल्दी से बड़ा हो
जाऊं .........बस जल्दी से मर्द बन जाऊं ..........
हम सभी लोग गाँव में रहते थे .........बरसात के दिन थे ......बापू खेत में गये थे ,गुड़िया के साथ मैं बैठा
दलान में खेल रहा था .....गुड़िया बस ,रोये ही जा रही थी ,शायद भूखी थी ..........बहुत चुप कराने की कोशिश
कर रहा था पर वह चुप ही नहीं हो रही थी . मैंने अपनी अंगुली उसके मुहं में डाल दी ,वह उसे चूसने लगी ,पल भर को
वह चुप भी हुई .....पर फिर से रोने लगी .......सौतेली माँ घर में से चिल्लाती हुई ..............इस हराम..को चुप करा ....
भूखी है .....मैंने डरते हुए कहा..........
सौतेली माँ का चेहरा विकृत सा हो गया .......गुस्से में ,अपना मांस काट के खिला दे ...........इतनी ही भूखी है तो
...............फिर गुस्से में वह बोली .......जा तलाब से करेमुआ का साग तोड़ ला .....और इसको भी साथ ले जा ,वर्ना इसे चूल्हे में डाल दूंगी .......
मैंने रोती हुई बहन को गोद में लिया और तलाब की तरफ चल दिया.......बरसात में यह तलाब खूब भर जाता
है करेमुआ क़ा साग भी तलाब के किनारे किनारे पानी में लगता है ......अक्सर मैं करेमुआ का साग तोड़ने आता था
..........गुड़िया को वहीं किनारे बिठा के एक साग क़ा टुकडा दे दिया वह उसे चूसने लगी ,अब वह चुप हो गयी थी
मैंने जल्दी -जल्दी साग तोड़ना शुरु किया ..........एक दो बार गुड़िया को देख लेता था वह मजे से साग को चूस रही थी
........मैं अपने काम में लगा रहा ढेर सारा साग तोड़ लिया ........
साग को एक तरफ रख के गुड़िया को देखने लगा ................गुड़िया नज़र नहीं आयी .......मुझे लगा बापू आये
होंगे और गुड़िया को लेकर घर चले गये होंगे ............मैंने साग लिया और घर की तरफ भागा ...........मन को साग दिया
...........घर में इधर उधर देखा ....गुड़िया नज़र नहीं आयी ....मैं डर गया ,फिर भागा हुआ तलाब पे गया ...............
एक डर मेरे अन्दर बैठ गया ,कहीं गुड़िया ,तलाब में डूब तो नहीं गयी ...........हल्का -हल्का उजाला था ,तालाब पे फिर से
देखा .......जहाँ साग तोड़ रहा था ,वहाँ देखा ,गुड़िया पानी की सतह पे तैर रही थी ,...............मैंने जल्दी से उसे गोद में उठा
लिया ..........और लगा उसे जगाने ,उसका पेट पानी से भर के फूल चुका था ............बेजान शरीर लिए ,वहीं जमीन पे बैठ
गया .......मैं रो -रो के जगाता रहा ,इस छोटी सी उम्र में ,बापू की मार से इतना डर गया ,लगा मुझे बापू आज तो
मार ही डालेगा ......अब गुड़िया क़ा क्या करूं ..................
मैंने गुड़िया को वहीं पानी के अन्दर दफना दिया .......
घर पहुंचा ...रात काफी बीत चुकी थी ...........बापू खाना खा रहे थे .....मुझे देख के बोल पड़े
चल तू भी खा ले .........मैं वहीं बगल में बैठ गया ,अक्सर मैं बापू की थाली में खाता हूँ ......चल खा ..........
अरे गुड़िया कहाँ है ? माँ बोल पड़ी ......इसी के साथ होगी ........
बापू ने एक कौर मेरे मुहं में डाला ...........और पूछा सुला दिया .....................
मैंने हाँ में सर हिला दिया ...........फिर बापू कहने लगे .......सोच रहा हूँ ,एक गाय ले लेता हूँ .....बच्चों को दूध पीने
को आराम हो जाएगा ............अभी तक वह कौर मेरे मुहं में ही था ......
मैं वहाँ से उठ के ,घर से बाहर भाग गया ............उस रात मैं भागता रहा ,मुझे नहीं मालूम .........कहाँ मैं बेहोश हो
के गिर गया ..............
जिस आदमी को मैं मिला .........वह मुझे कहाँ ले गया मुझे नहीं मालूम ...........लेकिन अपनी गुड़िया से बहुत दूर ............
..........उस आदमी ने मुझे पढ़ाया लिखाया ......बेटे क़ा प्यार दिया ...........फिर मैं उस गाँव नहीं गया .........
मुझे तो अपने गाँव क़ा नाम भी नहीं मालूम ..........बस एक बहन की याद है .............
1 टिप्पणी:
मार्मिक प्रस्तुति।
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