मैं इतना छोटा था कि .......मुझे अपने भाई के खोने का दुःख नहीं हुआ ,मैं अर्जुन को ही अपना भाई मानने लगा ...
वक्त बीतने लगा ....ज्यों -ज्यों हम बडे होने लगे ....मैं लखनऊ शहर में पढने आ गया ,,,माँ भी आ गयी ..........
अर्जुन गाँव में अकेला रह गया ......उसके बाबा उसका पूरा ख्याल रखते ......मैं जब भी गाँव जाता मेरा खाना
पीना उसके घर ही होता .......फिर हम दोनों खेलते उसकी आम की बाग़ में चले जाते वहीं दिन भर गुज़र जाता
सोलह साल में उसकी शादी हो गयी अभी उसने दसवाँ क्लाश ही पास किया था .....बाबा जी को शायद मालूम था .....वह अब कुछ ही दिनों के मेहमान हैं ......और हुआ भी वही ......अर्जुन का गौना आ गया था .....
.........और फिर एक दिन वह चल बसे .......अर्जुन अकेला हो गया .....अभी तो वह पढाई ही कर रहा था ......एक
बेटी भी हो गयी .......सब तरफ से खर्च .......खेती से इतना पैसा नहीं निकल सकता था .....किसी के आगे हाथ फैलाना ,उसकी सोच से बाहर था .....
नौकरी की तलाश शुरू हो गयी .....कई जगह नौकरी मिल तो रही थी पर घर से दूर .......यह उसके लिए मुश्किल था करना ......अभी तक तीन बेटियां हो चुकी थी .........उनको पालना ...देख भाल करना ...और ऊपर से माँ नाक -भँव सिकोड़ना तीन -तीन बेटियाँ दे दी .....एक बेटा नहीं जन सकती ......अर्जुन कोई हीरो तो था नहीं .....बेटे पैदा कर दे ......पडोसिओं से अक्सर अर्जुन की माँ झगड़ लेती थी ......घर लौटने पे भी यह सब सुनना ........उसको बड़ा गुस्सैला बना दिया ....अब ..वह हर बात पे पडोसिओं से झगड़ पड़ता था .......
मैं तो शहर की जिन्दगी जी रहा था .......यह सब मुझे नहीं मालुम था हमारी दोस्ती तो थी पर जब भी मैं गाँव आता .............कुछ न कुछ ऐसा सुनता ........मैं सोचता अर्जुन इतना बदल जाएगा मुझे यकीन नहीं होता था .......अब ऐसा महसूस होता है हालात ने उसे बदल दिया था .......
वह गाँव भर का दुश्मन हो गया ......हर कोई उसमें हज़ारो कमियाँ देखने लगा ......कोई उससे बात नहीं करता ,कोई उसके घर मजदूरी तक नहीं करने आता ....दुसरे गाँव से काम करने वालो को बुलाता और अपने खेतों में काम करवाता ,गुस्सा और नफरत इतनी बढ़ गयी की वगैर बात पे किसी नराज हो जाता .........एक बहुत अच्छी आदत थी उसमें मीठा बोलने की ......आप को कभी ना नहीं कहेगा ......और जो चाहता है वह कर के रहेगा ....वही उसकी हमेशा जीत का कारण रही है .....
दो बेटे हो चुके थे ,माँ बहुत खुश थी अपने बेटे के बहादुर कारनामे से ........अब कर्म भूमि उसका अपना गाँव ही था .......पढ़े -लिखे लोग गाँव छोड़ के शहरों में बस चुके थे .......यह वह दौर था जब पढाई -लिखाई पे बहुत जोर दिया जा रहा था ......अर्जुन ने अनपढ़ लोगो को इक्कठा किया और एक स्कूल की नीव डाल दी ....
गाँव में इतनी दुश्मनी हो चुकी थो एक दिन ,किसी सर -फिरे ने उन पे गोली चला दी ....
वक्त बीतने लगा ....ज्यों -ज्यों हम बडे होने लगे ....मैं लखनऊ शहर में पढने आ गया ,,,माँ भी आ गयी ..........
अर्जुन गाँव में अकेला रह गया ......उसके बाबा उसका पूरा ख्याल रखते ......मैं जब भी गाँव जाता मेरा खाना
पीना उसके घर ही होता .......फिर हम दोनों खेलते उसकी आम की बाग़ में चले जाते वहीं दिन भर गुज़र जाता
सोलह साल में उसकी शादी हो गयी अभी उसने दसवाँ क्लाश ही पास किया था .....बाबा जी को शायद मालूम था .....वह अब कुछ ही दिनों के मेहमान हैं ......और हुआ भी वही ......अर्जुन का गौना आ गया था .....
.........और फिर एक दिन वह चल बसे .......अर्जुन अकेला हो गया .....अभी तो वह पढाई ही कर रहा था ......एक
बेटी भी हो गयी .......सब तरफ से खर्च .......खेती से इतना पैसा नहीं निकल सकता था .....किसी के आगे हाथ फैलाना ,उसकी सोच से बाहर था .....
नौकरी की तलाश शुरू हो गयी .....कई जगह नौकरी मिल तो रही थी पर घर से दूर .......यह उसके लिए मुश्किल था करना ......अभी तक तीन बेटियां हो चुकी थी .........उनको पालना ...देख भाल करना ...और ऊपर से माँ नाक -भँव सिकोड़ना तीन -तीन बेटियाँ दे दी .....एक बेटा नहीं जन सकती ......अर्जुन कोई हीरो तो था नहीं .....बेटे पैदा कर दे ......पडोसिओं से अक्सर अर्जुन की माँ झगड़ लेती थी ......घर लौटने पे भी यह सब सुनना ........उसको बड़ा गुस्सैला बना दिया ....अब ..वह हर बात पे पडोसिओं से झगड़ पड़ता था .......
मैं तो शहर की जिन्दगी जी रहा था .......यह सब मुझे नहीं मालुम था हमारी दोस्ती तो थी पर जब भी मैं गाँव आता .............कुछ न कुछ ऐसा सुनता ........मैं सोचता अर्जुन इतना बदल जाएगा मुझे यकीन नहीं होता था .......अब ऐसा महसूस होता है हालात ने उसे बदल दिया था .......
वह गाँव भर का दुश्मन हो गया ......हर कोई उसमें हज़ारो कमियाँ देखने लगा ......कोई उससे बात नहीं करता ,कोई उसके घर मजदूरी तक नहीं करने आता ....दुसरे गाँव से काम करने वालो को बुलाता और अपने खेतों में काम करवाता ,गुस्सा और नफरत इतनी बढ़ गयी की वगैर बात पे किसी नराज हो जाता .........एक बहुत अच्छी आदत थी उसमें मीठा बोलने की ......आप को कभी ना नहीं कहेगा ......और जो चाहता है वह कर के रहेगा ....वही उसकी हमेशा जीत का कारण रही है .....
दो बेटे हो चुके थे ,माँ बहुत खुश थी अपने बेटे के बहादुर कारनामे से ........अब कर्म भूमि उसका अपना गाँव ही था .......पढ़े -लिखे लोग गाँव छोड़ के शहरों में बस चुके थे .......यह वह दौर था जब पढाई -लिखाई पे बहुत जोर दिया जा रहा था ......अर्जुन ने अनपढ़ लोगो को इक्कठा किया और एक स्कूल की नीव डाल दी ....
गाँव में इतनी दुश्मनी हो चुकी थो एक दिन ,किसी सर -फिरे ने उन पे गोली चला दी ....
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