शुक्रवार, जून 21, 2013

arjun

   मैं बहुत करीब से जनता हूँ उसे .......बहुत  भोला था बचपन में ....बिलकुल सीधा ,मुझसे कोई दो या तीन साल छोटा ......गाँव में पाँच घर ही पंडितों का था तब ,सभी गरीब ही थे ,मेरे घर और उसके घर ही देसी घी खाया जाता था ........अर्जुन बिलकुल अकेला ही था ,यह नाम उसके बाबा ने उसे दिया था .......क्यों रखा था ...
यह नाम आज पचास सालो बाद पता  चला .........तभी एक बार फिर से उसे लड़कपन से देखने का मन करने लगा ..........

           उसके पिता  और मेरे पिता  बहुत अच्छे दोस्त थे ......दोनों लोगो की शादियाँ एक ही उम्र में हुई थी .....
उनको भी पहली लड़की हुई .....और मेरे पिता  को भी  .....फिर मैं पैदा हुआ .....अर्जुन के पिता  पीछे रह गये ...
मेरे होते ही घर में खूब मिठाई बाँटी गयी .....अर्जुन के घर में सन्नाटा ...दोनों दोस्त मिले .......उस रात दोनों ने
खूब भंग का सेवन किया .........
   
            कोई दो साल बाद अर्जुन पैदा हुआ ....और मेरे यहाँ मेरा छोटा भाई आ गया ....फिर क्या था दोनों घरो में खूब नाच -गाना हुआ .....और यह सब महीनों  चलता रहा इसी बीच .....अर्जुन के पिता का देहांत हो गया .....वह करीब चौबीस साल के ही थे ......इस सदमे में अर्जुन की माँ का दूध सूख  गया   .......अर्जुन के बाबा जी
बहुत बहादुर किस्म के इंसान थे ......वह भी अपने पिता  के अकेली औलाद थे उन्हें भी एक ही पुत्र था और अब
अर्जुन भी अपने माँ -बाप की अकेली औलाद थी ....

        बाबा जी ने हिम्मत की और अर्जुन को औलाद की तरह पालने की  .... .............माँ का बुरा हाल था ....रो रो  ..... अर्जुन का पालन .....और देख भाल ठीक से नहीं हो पा  रहा था .अर्जुन के बाबा जी ....अर्जुन को मेरी माँ की गोद में देजाते थे .....मेरा छोटा भाई और वह माँ का दूध पीते .....माँ मेरी दो बच्चो को पालने लगी ....तभी कहीं मेरी दोस्ती उससे हो गयी ......मैं उसे अपना छोटा भाई  ही मानने  लगा ........इसी बीच हमारे गाँव में चेचक फ़ैल गयी .......मुझे और मेरे छोटे भाई को चेचक निकल आई .....और माँ को भी .........अर्जुन अपनी माँ के साथ अपने नाना के घर चला गया ........हम में से किसी के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी ..........मैं और मेरी माँ तो बच गये ......छोटा भाई गुजर गया ....

            कई महीनो बाद अर्जुन लौट आया ....ननिहाल से अब उसे दो माओं का प्यार मिलने लगा 

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