इस घर से बहुत सारी यादें जुड़ी हैं बरसात का महिना था ,हलकी -हलकी बारिस हो रही थी ,हाथ में दो किताबे ,जिसे मुझे ९१ कोजी होम में पहचाना था भीगता हुआ वहां पहुँचा ,किताबो को मैंने भीगने नही दिया था
दरवाजा खुला सामने एक दुबला- पतला इन्सान खडा था , उसने मुझे घूर कर देखा , नौकर लग रहा था
हिम्मत कर के पूछा,गुलजार साहब हैं ?फिर उसने मुझे देखा, फ़िर सर हिला कर अंदर आने को कहा ,मैं झिझकता हुआ अंदर पहुँचा वो आदमी दुसरे कमरे में चला गया ,मैं वहीँ खड़ा, उस घर को देखता रहा
थोडी देर बाद गुलजार साहब बाहर आए ,मुझे भीगा हुआ देखा ,वह कुछ कहते, उससे पहले वह दोनों
किताबे उनकी तरफ बढ़ा दी ,और कहा रामलाल जी ने आप के लिये भिजवाया है यह सुनकर
गुलजार साहब बहुत खुश हुए, और मुझे अंदर बैठने को कहा
5 टिप्पणियां:
bhai vah!
bhangar ji
yah ap ki yaadon ka bhangar hai
ya aur kuch
phir bhi achchh laga
badhai
narayan narayan
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aap sabhi logo ne mujhe jaana vahi bahut achchhaa laga.
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