सोमवार, जून 08, 2009

चर्च

रोज़ की तरह ,आज भी उसी वक्त को सोच रहा था ,

वो यादें , वो पल ,वो लड़ना ,सब ऐसे याद है ,

जैसे किसी फ़िल्म का कोई हिस्सा हो ,

जो बीसों वर्षों से वैसा ही चल रहा हो ,

कुछ बदला नही ,मेरी सोच में ,बदला है तो सिर्फ़ शोच का रंग ,

अपने पोतों में वही रंग देख कर लगा , कुछ नही बदलता ,

बस वक्त की घडी आगे नयी शक्ल में आ जाती है ,

हम आज भी वहीं खडे -१९२० का वो पल देख रहे थे ,

सिर्फ़ भूगोल की शक्ल आज वैसी नही है ,

बांद्रा से महिम तक जाने के लिए ,नाव का इस्तेमाल किया जाता था ,

वहां एक चर्च है - जहाँ मैं उससे ,हर बुधवार को मिलता था .............

कोई टिप्पणी नहीं: