रोज़ की तरह ,आज भी उसी वक्त को सोच रहा था ,
वो यादें , वो पल ,वो लड़ना ,सब ऐसे याद है ,
जैसे किसी फ़िल्म का कोई हिस्सा हो ,
जो बीसों वर्षों से वैसा ही चल रहा हो ,
कुछ बदला नही ,मेरी सोच में ,बदला है तो सिर्फ़ शोच का रंग ,
अपने पोतों में वही रंग देख कर लगा , कुछ नही बदलता ,
बस वक्त की घडी आगे नयी शक्ल में आ जाती है ,
हम आज भी वहीं खडे -१९२० का वो पल देख रहे थे ,
सिर्फ़ भूगोल की शक्ल आज वैसी नही है ,
बांद्रा से महिम तक जाने के लिए ,नाव का इस्तेमाल किया जाता था ,
वहां एक चर्च है - जहाँ मैं उससे ,हर बुधवार को मिलता था .............
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें