मंगलवार, जून 09, 2009

प्यास

कई दिनों से इंतजार था ,एक ओस की बूंद का ,
रोज रात के तीसरे पहर से ,मुहं बाये खडा रहता हूँ ,
अध् मरा कर दिया ,मुझे इस प्यास ने ,
अब बरसात आसमान से नही होती ,
अब पहाडों पे बर्फ भी नही जमती ,
नदियाँ सूखके मरुस्थल हो गए ,
सिर्फ़ एक समुन्द्र बचा है ,जिसे चुरा चुरा के लोग पीतें हैं ,
खारे को मीठा समझ के ,
पहले शहर नदियों के किनारें बसते थे ,
अब समुन्द्र के किनारे बसतें हैं ,
भारत की सारी आबादी समुन्द्र के करीब आ चुकी है ,
वहाँ के पुराने बासिन्दे अपने को असली हक़दार समुन्द्र का समझतें हैं ,
इसी बात को लेकर रोज झगडा फसाद होते हैं - आपस में ...............

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