शुक्रवार, जून 26, 2009

मंजिल

अनजानी राहों ने साथ दिया मेरा ,
भटका जब भी दिया सहारा ,
मुरझाये चेहरे पे खुशी की लहर बिखेरी ,
अलसाई आखों में चमक की रौशनी भरी ,
चुप रहने की सजा ,
बड़ी मीठी होती है ,
दर्द भी सिमटा होता है ,
फूटती नसों की आग को ,
ज्वाला मुखी जैसे निकला मैंने ,
आज भी वही सूनी सड़कें ,
घूरे पे खिला गुलाब महके ,
हवा में हलकी सी खुनकी पहचान के ,
एक पुराना गीत याद आया .........
जो बचपन में माँ ने सुनाया था ,
फ़िर माँ की बड़ी याद आयी आज ,
अगर वो होती आज .....
अपने आसूं उसके आँचल से पोछ लेता .......

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