इश्क का नजारा वो देखा , मैंने
दांतों तले उंगली दबानी पडती है ,
वरना जीभ कट जाने का डर रहता ,
वो लडकी अपने प्रेमी के साथ ,
मन्दिर में अपने ,माता पिता के सामने खडी थी ,
वो हिंदू थी ,लड़का मुस्लिम था ,
इश्क में जात -पांत दिखता नही ,
माँ -बाप ने कहा ,अगर शादी की तुमने ,
हम दाहकर लेगें ,इसी मन्दिर में ,
........लडकी ने भी कुछ ऐसा ही कहा ,
वो लड़का ,वहीं खड़ा , जो अभी तक चुप था ,
समझ गया ,मेरी वजह से तीन लोगो की जान जायेगी ,
इश्क में जीने से मर जाना ...........
आज भी वो लड़का महिम की सडको पर मिलता है ,
फटे कपडों में ,यह कहता हुआ ,
मैं मुसलमान हूँ -कसाई नही हूँ ...........
2 टिप्पणियां:
वाह, अति सुंदर विषय दर्शाया आपने
अपनी कविता के माध्यम से,
tir si chuban huee ...antim panktiyo par .....wedana besumar......ab kuchh likha nahi jata
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