शुक्रवार, जून 26, 2009

इश्क

इश्क का नजारा वो देखा , मैंने
दांतों तले उंगली दबानी पडती है ,
वरना जीभ कट जाने का डर रहता ,
वो लडकी अपने प्रेमी के साथ ,
मन्दिर में अपने ,माता पिता के सामने खडी थी ,
वो हिंदू थी ,लड़का मुस्लिम था ,
इश्क में जात -पांत दिखता नही ,
माँ -बाप ने कहा ,अगर शादी की तुमने ,
हम दाहकर लेगें ,इसी मन्दिर में ,
........लडकी ने भी कुछ ऐसा ही कहा ,
वो लड़का ,वहीं खड़ा , जो अभी तक चुप था ,
समझ गया ,मेरी वजह से तीन लोगो की जान जायेगी ,
इश्क में जीने से मर जाना ...........
आज भी वो लड़का महिम की सडको पर मिलता है ,
फटे कपडों में ,यह कहता हुआ ,
मैं मुसलमान हूँ -कसाई नही हूँ ...........

2 टिप्‍पणियां:

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

वाह, अति सुंदर विषय दर्शाया आपने
अपनी कविता के माध्यम से,

ओम आर्य ने कहा…

tir si chuban huee ...antim panktiyo par .....wedana besumar......ab kuchh likha nahi jata