चलो फ़िर से ,एक-दो चार प्यार की पींगे भरे ,
किसी को पहचान के , फ़िर से उसका नाम पूंछे ,
जेहन के बोझ को ,
किसी नदी के किनारे ,संध्या की आरती के ,
दिए की तरह ,जल में प्रवाह कर दें ,
फ़िर सूने मन से ,घर में घुसे ,
सुबह से गुस्साई पत्नी को समझा दें ,
मैने अपने मन के बोझ को ,
कैसे नदी में फेंक दिया ...........
2 टिप्पणियां:
bhai ....ati uatam khyaal hai .......sundar
बहुत बेहतर सोच!
एक टिप्पणी भेजें