शुक्रवार, जून 19, 2009

गुब्बारे

दौड़ चलो , दौड़ चलो ,
सुबह की पहली गाड़ी पकड लो ,
छूट गयी तो ,
रह जाओगे ,कल की खुशियाँ पाने से ,
दौडो उस हवा के साथ ,
जो सात रंगों में रंगी उड़ रही ,
तुम भी रंग लो अपने आप को ,
किसी एक रंग से अपनी पहचान बना लो ,
और उड़ जाओ गुब्बारें की तरह ,
..........पता नही ,
कब हवा निकल जाए ........?
और बेदम हो के जमीन पर गिर जाओ ,
फ़िर कोई हवा नही भरेगा ...
बच्चे उठा -उठा के ,
मुंह से फुला -फुला के ,तुम्हें बेदम ,
और फाड़ -फाड़ के चिथडा बना देगें .........

1 टिप्पणी:

ओम आर्य ने कहा…

दौड़ चलो , दौड़ चलो ,
सुबह की पहली गाड़ी पकड लो ,
छूट गयी तो ,
रह जाओगे ,कल की खुशियाँ पाने से
बहुत ही प्रेरणादायक कविता .................ये पंक्तियाँ लय और ताल दोनो है ......सुन्दर रचना