बुधवार, जून 03, 2009

नदी का पुल

सोच के जीने की बहुत कोशिश की ,
उलझनो को सुलझा के जीने कोशिश की ,
पर इस संसार के झमेलो में उलझता ही रहा ,
पुल पे खडा नदी की धारा को देखता ,
अपने ख्यालो में खोया ,
एक लड़की देखी ,जिन्दा बहती हुई ,धार में ,
मुझे अपनी बेटी का ख्याल आया ,
जिसका ब्याह करना अभी बाकीहै ,
लड़की डूबती ,बहती हुई चली जा रही थी ,
मुझे उसे बचाना चाहिए था ,
पुल से कूद के उसे किनारे लाना था,
मैंने कुछ नही किया ,

सुबह अख़बार में ,
एक ख़बर छपी
एक लड़की ने आत्महत्या की,
और एक इन्सान उसे देखता रहा ,
पर उसने उसे बचाया नही ,
पुलिस उस आदमी को खोज रही है !

3 टिप्‍पणियां:

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

सच में हम सब ना जाने कितनी बार चाहते हुए भी कुछ कर नहीं पाते...!पानी का बहाव जिधर ले जाये,जिंदगी उधर ही चली जाती है...

भंगार ने कहा…

bahu bahut sukrya bas ek dard likh rha hun

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव हैं।बहुत बढिया!