मंगलवार, जून 23, 2009

फरेबी मन

दिल मेरा बड़ा चालू है ,
बड़ा चटक -मटक करता है ,
कभी इस ओर गिरता है ,
कभी उस ओर भागता है ,
बहुत समझाता हूँ ,
पर जिद्द किए था ,उनकी झलक पाने को ,
रास्ते में वो जब नजर आयी ,
मुझे छोड़ दिल इस तरह भागा,
जैसे किसी ने उसके गाल पे चिकोटी काट ली हो ,
पास तो उनके वो पहुँच गया ,
पर मेरे वगैर अधूरा था ,
मन तो मेरे पास पड़ा था ,
पर जो उसने वहां देखा ,
वह मुझे आ के बताया ,
वो किसी और का दिल , पर्स में लेकर घूमती हैं ...........

5 टिप्‍पणियां:

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) ने कहा…

मन तो मेरे पास पड़ा था ,
पर जो उसने वहां देखा ,
वह मुझे आ के बताया ,
वो किसी और का दिल , पर्स में लेकर घूमती हैं ...........
बहुत खूब मित्र बहुत ही सुंदर बधाई स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084

Unknown ने कहा…

achha hai !

Udan Tashtari ने कहा…

सही है!

Alpana Verma ने कहा…

kavita ki antim pankti kavi ke dard ko bayan kar gayi..

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बढिया!!