जीवन एक विवाह है ,
किसी से बंधना विवाह कहलाता है ,
मै आज तक ,किसी से बंधा नही ,
बंधना मुझे पसंद नही ,
उम्र ग़ालिब की हो गयी ,
अब घर में रहता हूँ ,
जमाना बहुत आगे बढ़ गया ,
नेट पे शादियाँ हो जाती हैं ,
मेरी कविता पढ़ के ,किसी ने मुझे ख़त लिखा ,
वो रूस की रहने वाली थी ,
हिन्दी आती थी नही -अनुवाद पढ़ती थी
कम्पूटर के जरिये उस तक पहुंचा ,
उससे बात की ................,
अब वो जिद्द करने लगी ......,
मैं मास्को आ जाऊँ ......!
1 टिप्पणी:
ये कविता है या हकीकत
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