सोमवार, जुलाई 20, 2009

कल्पना

इस बार गर्मिओं में ,
नदी ,नाले के साथ साथ समुन्द्र भी सूख गया ,
पृथ्बी एक सपाट मैदान बन गया ,
बच्चों के खेलने की जगहें खूब बन गयी ,
जमीने अब खरीदना नही पडती ,
पानी की जरूरत ,अब इंसानों की नही रही ,
बादल अब मेघ नही बनते ,
नीला खुला आसमान नजर आता ,
अब सिर्फ़ दो मौसम होते ,जाडा गर्मी ,
जमीन पे कुछ होता नही .......,
दुसरे ग्रहों से -खाना ,सिर्फ़ खाने की चीजे आती ,
पीना शब्द डिक्शनरी से निकल गया ,
खा के नशा करते हैं ,लोग ........,
दुसरे ग्रहों जैसे ,हमारा भी पृथ्बी ,ग्रह बन गया ,
हमारी शक्लें ....सूखे छुहारे जैसी हो गयी ,
पर हम वगैर पिए ही खुश हैं .............,

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