गो़द में जिसे खिलाया था ,
जिद्द करता था ,भेल खाने को ,
आज भी उसे याद है ,
अब वो बडा हो गया ,
नौकरी लग गयी ,एक लडकी से प्यार भी ,
अब उसका ज्यादा वक्त ,लडकी के साथ गुजरता है ,
हम दोनों का ,अकेला -पन बढ़ने लगा ,
अक्सर मेरी बीबी ,वैगर बात के झगड़ती ,
मैं उसकी मानसिक स्थित से परचित हूँ ,
उसका बेटा जो अपने दुःख -दर्द पहले उस से बांटता था ,
अब शायद किसी और से कहता है ,
रात को लेट आता है ,
माँ उसकी पसंद का खाना बनाती ,
पर वो बाहर से खा के आता ,
माँ के दर्द को मैं सहलाता हूँ ,
सांत्वना देता हूँ ,
तुम्हारा बुढापा कट जाएगा ,
पोते -पोती के आते ही ,
यह सुन कर .......,
गुस्से में कहती ,मुझे कुछ नही चाहिये ,
ना पोता -ना पोती ,ना बेटा - ना बेटी ,
मेरी कोख में पला मेरा जब नही हुआ ,
पोता क्या होगा ..........?
फुंकारती हुई मुझे ध्यान से देखती ,
कैसे तुम जी लेते हो ...........?
कुछ सोच के कहा ....मैंने ,
दर्द के साथ जीना मुझे अब आ गया है......?
2 टिप्पणियां:
दर्द के साथ जीना मुझे अब आ गया है......?
-कितनों की कहानी समेट ली इस एक पंक्ति में.
udan tashtari bahut bahut sukrya
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