मंगलवार, अगस्त 04, 2009

यादें

जब भी ,
कानपुर से लखनऊ जाता हूँ ,
गंगा का पुल पड़ता है ,
घाट को देख कर ,यादों में खो जाता ,
कुछ मौकों पे ,यहाँ आया हूँ ,
मेरे पिता ,जो एक बार कहने पे ,
हवाई जहाज ला देते थे ,
उन्हीं को ,इसी अपने कंधे पे ,
उठा कर ,इसी गंगा घाट पर लाया था ,
गंगा में नहा कर ,
सर के बाल निकलवाये थे ,
पिता को मुख -अग्नि दी थी ,
तब बहुत छोटा नही था ,
पर माँ ने -हमें अपने आँचल में समेट लिया ,
बच्चों की तरह पालने लगी ,
फ़िर तेरह साल बाद ,यहाँ आया ,
इस बार माँ को लाया ,
वही मेरे कंधे थे ,वही महौल था ,
वही गंगा जी ,वही मैं ,फ़िर नहाया ,
सर के बाल निकलवाये ,
मुख अग्नी देने चला ,
माँ का हाथ अर्थी से बाहर ,निकल आया था ,
यह वही हाथ था ,
जिसने मुझे दूध ,पिलाया था ,
चलना सिखाया ,और गुस्से में मारा भी था ,
हाथ उठा के अन्दर किया ,
यह हाथ भी जल जाय ,
जिंदा होती तो ,मैं क्या .....?
दूर अकेले में जा कर बैठ गया ,
देखता रहा ,माँ को जलते हुए ,कब तक ,
मुझे नही मालूम ........,
आज फ़िर वहीं दूर बैठा ,मैं दिख गया ,
जागा तो ,उन्नाव आ गया था ,
वहां का समोसा बहुत अच्छा होता है ,
पहले भी कई बार ,इसी दूकान पर रुका था ,
दो समोसे लिए ,और एक चाय ,फ़िर यादों को वहीं छोड़ा ,
और चल दिया ,बच्चों से मिलने ,छोटी को समोसे पसंद हैं ,