गुरुवार, अगस्त 06, 2009

क्रोध

उम्र ढलते -ढलते बहुत साल लग गए ,
आज का दिन देखने के लिए ,
रोज़ -रोज़ शीशे में ,ख़ुद को देखता ,
उसके बदलाव को याद रखता ,
अब सब कुछ ,बदल गया ,
ख़ुद को पहचाने ,रोशनी नही रही ,
सब तरफ से दुत्कारा जाता ,बूढे हो गए ,
अब और जी कर क्या करोगे ...?
मेरा खाना -पीना -सोना अखरता सब को ,
सभी ऊब गए ,मेरी लम्बी उम्र से ,
यही सब देखने लिए ,आज तक जिया हूँ ,
खूब पहचान रहा हूँ , सभी को ,
अकेले में ,वगैर दांतों के खूब हँसता हूँ ,
लोग पागल समझते ,बुढापे में दिमाग चल गया ,
कहते सब ,अब इसको मर जाना चाहिये ,
बच्चों को सता रहा है ,
पिछले जन्म का बदला ले रहा है ,
इस जन्म में ,बुढा बन के ...........,