शुक्रवार, अगस्त 07, 2009

ढलता सूरज

उस शाम ,
मुडेर पे बैठा ,मन मेरा ,
गीत गुनगुनाता ,भोंरों सा उड़ चला ,
उस शाम मन मेरा ,
मुडेर पे बैठा .........,
फूल खिले -दरख्तों पे ,चिडिओं के गीत ,
शोर बन के उड़ चले ......,
चुरा के उनके ,गीतों को ,मैं गुनगुना रहा ,
उस शाम ,
मुडेर पे बैठा ....मन मेरा ,
खेल खेल में .....,
उसको अपने गले लगा के ,
पूछा उससे नाम उसका ,
हस के मुह मोड़ लिया उसने ,
भाग गई ,तेजी से अपने घर की ओर ,
आज भी उसी मुडेर पे बैठा ,
वही गीत गुनगुना रहा ,
जो, जाते जाते दे गयी थी ,
मुखडा सिर्फ़ याद है ,
आगे -का अंदाज बताया नही ,
बैठा इन्तजार है -- उसके आने का ,
अबकी जाडों में ......,
फ़िर दूर देश से उड़ के आएगी,
मुडेर पे --अपने बगल की जगह ,
चुरा के रखी है ,अभी तक ,उसके लिए ....,

2 टिप्‍पणियां:

चन्दन कुमार ने कहा…

maza aa gaya . behtarin bhaw ke sath

M VERMA ने कहा…

उस शाम मन मेरा ,
मुडेर पे बैठा .........,
खूबसूरत भावो से लैस खूबसूरत रचना