मन को हल्का करना ,
बहुत सरल ,और सीधा है ,
वैसे मन हर पल ,
मकडी के जाले की तरह ,
कुछ न कुछ बुनता रहता ,
और हम उसमें फंसते जाते ,
मन भारी होने लगता, अशांत हो कर ,
वगैर बात के ,गुस्सा करता ,
जब भी इस ,भवंर में फंस जाओ ,
आखें बंद कर के ऐसे सोचो ,
अपना सब कुछ दुसरोंको दे -दो ,
तुम्हारा कुछ नही है ,इस दुनिया में ,
हम सभी को सब छोड़ के जाना होगा ,
अपना कुछ नही ,
लाल किला ,ताजमहल सब यहीं है ,
मुगलों का राज्य पूरे हिदुस्तान में फैला था ,
अब कहाँ मुग़ल ? कहाँ उनका परिवार ...?
सब खो गया ....बस इतिहास के पन्नों में दर्ज है ,
ऐसा सोच के देखो ,सच कहता हूँ ,
खून का दौडा शांत हो जायेगा ,
मन खुश हो के ,महकने लगेगा ,
इस सुझाव को मान लो ,
अपने को ,अपने ही जाल में ,फंसने से निकाल लो ,
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