मंगलवार, अगस्त 11, 2009

रंजिश

दुविधा में पडा ,
हाँ , कह के फंस गया ,
अब ,शाम को ,उससे मिलना पडे गा ,
वो मेरी सौतेली माँ है ,
माँ के मरने के बाद ,
मेरे पिता का जी बहलाया था ,
आज उसके बच्चे भी उसे छोड़ गए ,
वो अकेली तन्हा उस घर में रहती ,
शाम को मैं उसे मिला ,
उसके पास एक लिफाफा था ,
जो उसने मुझे दिया ,
पिता तुम्हारे ,छोड़ गए थे ,
फ़िर आज तक क्यों नही दिया ?
सौतेली माँ थी न ,
फ़िर अब क्यों .....?
मेरा रूखापन अब निकल गया ,
तू मुझे अपने बेटे से ज्यादा अब अच्छा लगता ,
उसके इस मुखौटे से डर लगने लगा ,
मैंने कुछ पैसे दिए ,वापस घर आ गया ,
लिफाफा खोल के देखा ,
उसमें एक चिठ्ठी थी ,
मुझे सम्बोधित कर के लिखा था ,
बेटा मैंने ही तुम्हारी माँ को मारा था ,
इस सौतेली तेरी माँ के कहने पे ,
मुझे सजा देना ,
अपने नाम से मेरा नाम हटा देना ,
कोई पूछे तो, सच बता देना ,
यही मेरी सजा होगी .........,

2 टिप्‍पणियां:

Arshia Ali ने कहा…

सच के कराब रचना.
{ Treasurer-T & S }

vandana gupta ने कहा…

kitna bhayanak sach