मंगलवार, अगस्त 11, 2009

एक और प्रेम

अंश है मेरा ,
खूब खेलता ,पत्तों पे ,
टुकुर -टुकुर देखता मुझे ,
एक पहचान निकालता मुझ में ,
कभी -कभी मुझे प् ....प् कह के पुकारता ,
तब मैं अपने आप से डरा इधर -उधर भागता ,
अंश अब बडा हो गया ,
उसकी आखों का रंग भूरा नजर आया ,
चोर की दाढ़ी में तिनका ,
यही डर मुझे सालता ,
एक रात मैं ,उससे मिला ,
अंश मेरा अंश क्यों लगता ॥?
एसा कैसे हो गया .....?
फ़िर उसने खुल के बताया ,
मुझे ,तुम जैसा बेटा चाहिए था ,
तुम्हारी फोटो मैंने छिपा के ,
आत्म सात कर लिया ........,
पर तुम्हारा रिश्ता ,तुम्हारे पति से ,
मैंने समझा दिया ...उसे ,
बेटी उसके जैसी पैदा करूंगी ,
वो मान गया ,बेटे का सौदा मैं जीत गयी ,
नाम भी तुम्हारा ही रखा ,
अंश को देख कर ....तुम्हारी कमी ,
अब कभी नही महसूस होगी ,
सारी जिन्दगी ...अंश के साथ रहूंगी ,
आखरी ...यात्रा भी ,उसी के कंधे पे करूंगी ,
अब तुम ही बताओ ,
मुझसे खुशहाल औरत और कौन होगी ....?

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